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नेतृत्व उनके सेनानी डिमिट्रियस ने किया ज्ञात होता है और वहीं सेना पाटलिपुत्र भी पहुंची होगी । इसीलिए ' यवनराज दिमित' का नाम खाखंड के हाथीगुफा लेख में आया है, जैसा श्री जायसवाल ने पढ़ा था |
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इस अभियान के कुछ पुरात्वगत प्रमाण भी हाल में मिले हैं। मीनंडर के सिक्के तो मथुरा में पहले से ही मिलते थे । इधर १९१० की खुदाई में काशी के समीप गंगा तट पर स्थित राजघाट नामक पुराने अवशेषों में यूनानियों की बहुत सी मिट्टी की मुहरें पाई गई हैं । उनपर देवी अयोना, देवता अपोलो, विजय की देवी नाइकी और हरक्यूलीन की मूर्तियां अंकित हैं एवम् कुछ मुद्राओं पर किसी यूनानी राजा का मस्तक भी है, जो अभी तक ठीक नहीं पहचाना गया । इन मुहरों के राजघाट में मिलने की व्याख्या इसी प्रकार हो सकती है कि जब यवसेना साकेतविजय के बाद पाटलिपुत्र की ओर बढ़ी तो उनकी एक टावनी मार्ग में काशी के गंगातट पर बनाई गई । वहीं ये मुहरं मित्री हैं। इसमें तो सन्देह नहीं कि यवन-सेना ने काशी- राजघाट में ठीक उसी स्थान पर गंगा पार की, जहां आज भी गलघाट के पुल से रेल गंगा पार करती है । कुसुमध्वत्र पाटलिपुत्र के लिये यहीं आखिरी नाका था। प्राचीन काल से ही विचार और बजातशत्रु जैसे मगधरान काशी के इस नाके को अपने अधिकार में रखने के लिये लुक रहते थे ।
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રતનનણી જિમ પેઢી, ભાર્ અલ્પ બહુ મૂલ ચોપૂર્વનું સાર છે, મત્ર એ તેનુને તુલ શ્રી સમય અભ્યતર, એ પદ્મ પુચ પ્રમાણુ મચ્યુઅÜધ તેં જાળું, લા સહિત સુજાણુ. [वि] [ भटि भीना ]
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