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________________ किया तब ये इन लोकविनात घटना के समकालीन थे। ऐतिहासिक का मत है कि यवन राना मीनंडर ने पंजाब या पद्रदेश की राजधानी शाकल पर अधिकार करके पूर्वी भारत की ओर एक अभियान किया और यह बढ़ता हुआ साकत और पाटलिपुत्र तक चला गया। पर वहां वह स्थिर न रह. सका । किसी कारणवश वह शीघ्र ही पाटलिपुत्र से वापिस लौटा । इसका एक कारण यह कहा जाता है कि कलिंगराज महामेघवाइन खारवेल ने मगध पर नो अभियान किया था उसके भय से यवनरान दिमित मथुग की ओर छीट गया। यवना का यह अभियान पुष्यमित्र शुंग के समय में हुआ था । उस समय पतनछि जीवित थे । अतण्य सूत्र पर लिखते हुये उन्होंने अपने समय की 'आंखों देखी' (प्रयोक्तुदर्शनविषये) लोकप्रसिद्ध, घटना का उल्लेख कर दिया । वस्तुतः पतञ्जलि ने यवनों के दो अभियानों का वर्णन किया है । एक पूर्वी नो साकेत की ओर हुआ था, और दूसरा दक्षिण-पश्चिमी, नो मध्यमिका. नगरी की ओर हुआ था। मध्यमिका चित्तोर के पास नगरी स्थान है जहां प्राप्त निवि जनपद के पुराने सिमी पर 'महमिका' नाम पाया गया है। मध्यमिका और मझमिका एक ही है। इससे निधिन है कि यवनों का एक हमला दक्षिण की ओर हुआ.जिसमें यवन-सना तीर की तरह देश के भीतर घुसती हुई चित्तौड तक पहुंच गई थी। दक्षिण-पश्चिम का अभियान अरखोसिआ (हरद्विती) या अरगन्दाव प्रदेश की ओर से बढ़कर पाटछ (दक्षिणी सिन्ध), और मुराष्ट्र पर अधिकार करता हुआ सिगदिम तक पहुंच गया था, जिसकी पहचान पत्रमती या साबरमती के कांठ से की जा सकती है, जिसका प्राचीन नाम 'बहुगत देश भी था (कैम्ब्रिज हिस्ट्री १४५४२) यूनानी इतिहास लेखक साबो ने लिखा है कि मीनंडर और दिमिटियस दोनों ने, यवनों के थे अभियान किय थे । ज्ञात होता है कि मीनंडर यवनरान था जिसकी अध्यक्षता में डिमिष्ट्रियस ने सेना का संचालन किया । लोक में प्ठ्याति यही हुई कि मीनंडर न ही विजय की । इसी प्रसंग में डिमिट्रियस ने सिन्ध-सीवीर देश में दावामित्री नगरी की विनय की स्थापना की, जिसका उल्लेख काशिका (२७६) में आया है । भारतीय साहित्यमें भी इस ययन अभियान की गूज पाई जाती है । गागी संहिता के युगपुराण अंश में लिखा है : ततः सातमागम्य पाञ्चाला [-] माथुरांस्तथा । अपनाच सुविफ्रान्ताः प्राप्स्यन्ति मुमध्वजम् ।। ततः पुष्पपुरे ‘प्राप्त कदम प्रथिते हित। आकुलाः विषयाः न भविष्यन्ति न संशयः ॥ मध्यदेव न स्थास्यन्ति यवना युखदुर्मदाः । पामन्योन्यसमायाद् भविष्यन्ति न संशयः ॥ आमचक्रोत्थितं घोर युद्ध परमदारुणम् । तता युगयांचषां यवनानां परिक्षये ॥
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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