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________________ अरुणन्महेन्द्रो मथुराम् [ लेखक - डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, काशी विश्व-विद्यालय ] (Dr. Vasudeva Saran Agrawal ) जैनेन्द्रव्याकरण सूत्र २/२/९२ ( अनद्यतने लङ्) की अभयनन्दि विरचित महावृत्ति में लिखा है— परोक्षे लोक विज्ञाते प्रयोक्तुः शक्यदर्शनत्वेन - दर्शनविषये लड् वक्तव्यः । अरुणन्महेन्द्रो मथुराम् । अरुणद् यत्रनः साकेतम् । इस उल्लेख को पढ़ते ही पतञ्जलि के महाभाप्य के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकरण का ध्यान आता है .(वार्तिक) परोक्षे च लोकविज्ञाते प्रयोक्तुर्दर्शनविषयेः । (भाप्य) परोक्षे च लोकविज्ञाते प्रयोक्तुर्दर्शनविषये लहू वक्तव्यः । अरुणद्यवनः साकेतम् । अरुणद्यवनो मध्यमिकाम् । ( महाभाष्य, सूत्र ३।२।१११ अनद्यतने लङ । यह स्पष्ट है कि यहां जैनेन्द्रव्याकरण के रचयिता ने उसी विषय की चर्चा की है जिस पर काव्यायन 'का वार्तिक और पतञ्जलि का भाप्य है और यह भी सम्भव है कि महावृत्ति के कर्चा अभयनन्दि के सामने उदाहरण लिखते हुये पतञ्जलि की सामग्री उपस्थित थी । 'अरुणद्यवनः साकेतम् ' उदाहरण-दोनों में समान हैं। शेष दो उदाहरण भिन्न हैं । इस प्रकार यहां तीन ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख है १- अरुणद् यवनः साकेतम् । २ - अरुणद् यवनः मध्यमिकाम् । पतञ्जलि अभयनन्दि { ३–अरुणन्महेन्द्रो मधुराम् । ' यवन ने साकेत और मध्यमिका पर आक्रमण करके उन दो नगरों पर घेरा डाला | महेन्द्र ने मथुरा को छेडकर उसका घेरा डाला ।' व्याकरण के नियम के अनुसार ये तीनों लोकों में प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाएँ (लोकविज्ञात) होनी चाहिये। दूसरी शर्त यह थी कि जो व्यक्ति इस वाक्य का प्रयोग करे वह उस काल में जीवित हो, जब ये घटनाएँ घटीं, अर्थात् घटनाएँ उसके समकालीन होनी चाहिये । पतञ्जलि ने जब साकेत और मध्यमिका पर यवन-आक्रमण का उल्लेख
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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