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- श्रीयशोविजयजीकी जीवन-कार्य रूपरेखा
लेखक : पं० श्रीमान् सुखलालजी संघवी
प्रस्तुत ग्रन्थ जैनतर्कभापाके प्रणेता उपाध्याय श्रीमान् यशोविजय है । उनके जीवनके बारे में सत्य, अर्धसत्य अनेक बातें प्रचलित थीं पर नवसे उन्होंके समकालीन गणी कान्तिविनयजीका बनाया सुजशवेली भास' पूरा प्राप्त हुआ, जो बिलकुल विश्वसनीय है, तबसे उनके नोचनकी खरीख़री बातें बिलकुल स्पष्ट हो गई। वह 'भास' तत्कालीन गुजराती भाषांमें पद्यबद्ध है जिसका आधुनिक गुजराती में सटिप्पण सार- विवेचन प्रसिद्ध लेखक श्रीयुत मोहनलाल द. देसाई B. A. LL.B. ने लिखा है । उसके आधारसे यहाँ उपाध्याजीका जीवन संक्षेपमें दिया जाता है
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: : " उपाध्यायनीका जन्मस्थान गुजगतमें कलोल (बी. वी. एन्ड सी. आई. रेल्वे ) के पास * कनोडु' नामक गाँव है, जो अभी भी मौजूद है। उस गाँवमें 'नारायण' नामका व्यापारी था जिसकी धर्मपत्नी 'सोमागदे' थी । उस दम्पतिके 'जसवंत' और 'पद्मसिंह' दो कुमार थे । कभी अकचरप्रतिबोधक प्रसिद्ध जैनाचार्य हीरविजयसूरिकी शिष्यपरंपरामें होनेवाले पण्डितवर्य श्री. 'नयविजय' पाटणके समीपवर्ती ‘कुणगेर नामक गाँव से विहार करते हुए उस 'कनोड्डु गाँनमें पधारे। उनके प्रतिबोधसे उक्त दोनों कुमार अपने माता-पिताकी सम्मतिसें 'उनके साथ हो लिए और दोनोंने पाटण में पंः नयविनयजी के पास ही वि. सं. १६८८ में दीक्षा ली और उसी साल श्रीविजयदेवसूरिक हाथसे उनकी बडी दीक्षा भी हुई। ठीक ज्ञात नहीं किं दीक्षाके समय दोनोंकी उम्र क्या होगी, पर संभवतः वे दस-बारह वर्षसे कम उम्र के नं रहे होंगे। दीक्षाके समय 'जसवंत ' का 'यशोविजय ' और 'पद्मसिंह ' का 'पद्मविजय' नाम रखा गया । उसी पद्मविजयको उपाध्यायजी अपनी कृतिके अंतमें सहोदररूपसे स्मरण करते हैं ।
सं. १६९९ में ' अहमदावाद' शहर में संघ समक्ष यशोविजयजीने आठ अवधान किये । इससे प्रभावित होकर वहाँ के एक घनंजी सूरा नामक प्रसिद्ध व्यापारीने गुरु श्रीनयविनयजी को विनति की कि पंण्डित यशोविजयजीको काशी जैसे स्थानमें पढ़ाकर दूसरा हेमचन्द्र तैयार कीजिए। उक्क सेठने इसके वास्ते दो हजार चाँदी के दीनार खर्च करना मंजूर किया और हुंडी लिख दी । गुरु नयविजयजी शिष्य यशोविजय आदि सहित काशीमें आए और उन्हें वहाँके प्रसिद्ध किसी भट्टाचार्यके पास न्याय आदि दर्शनोंका तीन वर्षतक दक्षिणा दान-पूर्वक अभ्यास कराया। काशी में ही कभी