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२-टवणीना चार डंडे तेओ पाण्डित्यना गर्व सूचक चार ध्वजाओं वांचता हता; एम सुवर्णसिद्धि मेळवी हती ते माफीपत्र ल्यानी बात, यति सायना सम्बन्धनी वातो, तेमना जीवन साये अघटमान लागती अतिशयोक्तिभरी अन्य किंवदन्तीओ सम्यग् आलोचना मार्गी रही है.
३- (१) न्यायविशारद, (२) न्यायाचार्य, अनं (३) उपाध्याय - आत्रण पदवीओनो श्रीमद स्वयं उल्लेख क्यों . १-३ आ वे पदवी कोण ने क्यां आपी तनो तो, तेओश्री तेम न मासकार उल्लेख कर क्रे. पण नंबर व बाळी पदवी कया स्थळे अन कोन मळी ? तेनो निर्देश नथी मळतो; तेमन; तमण ने सो ग्रन्थो रच्या, ते क्रया ? ते पण गंभीर विचारणा मागी ले के.
४ - जन्मस्थान कनोडुन हतुं के केम !
५- योगीश्री आनन्दघनजी साधेनुं मिलन क्यारे ने कयां थयुं ! ६ - कद्देवाय के उपाध्यायनी सिनोर पाने नर्मदाना किनारे आवेला निकोग गाममां घणो समय रह्या हता. अने त्यां तमनो ग्रन्थसंग्रह हतो, तो या बात झुं याची ले ?
७-खंभातनो बाद अनं ध्यां न काशोथी आल विद्यागुरुतुं करेलं गौरवपूर्ण बहुमान ए हकीकत यथातथ्य के खरी !
८-तओनो प्राण लेवा मांटना थऐटा प्रयासो अंगे, तमणे स्वयं श्रीशंखेश्वरजीना स्तनमां ने हृदयोहार काव्या ते शुं सूचव के !
९- कविश्री बनारसीदास आदिनी कोई कोई पद्य रचना साये उपाध्यायजीनी पद्यकृतिनुं अक्षरशः साम्य आहे, तो तनो शो अर्थ अनं तेम बनवानुं कारण शुं !
१०- उपाध्यायजीने जैन लगत, आगळ हलका चौतरवा विरोधीओए कोई कोई कृति तेमना नाम चढावी दोषी के तं अंगे.
यत्री आची अनेक हकीकत चकासवानी के.
खेदजनक घटना
बाकी शासनना आत्रा एक परमप्रभावक, असाधारण विद्वान, महान सर्जनकार, कूर्चाशारद अविरत ज्ञानोपासना अने अखण्ड तत्त्वचिन्तनना परिपाक रूपे ज्ञाननिचिनी समृद्ध अने अणमोह भेट आपनार, सत्यने मांडे सतन झझूमनार, क्रान्तिकारी संत, जैन संघमा पंटली शिथिलताओ साम जेहाद जगावनार, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी अहाडंक लगावनार, तात्विक चर्चाओं, वादविवादो द्वारा वस्तुना सर्वांगी सत्यने स्थापित करनार, हंदक पदार्थन के हकीकतोंन सर्वांगी दृष्टियां लोतां शीखवनार, भौतिक अनुशासन उपर आध्यात्मिक अनुशासननी अनिवार्य आवश्यकतानी उद्घोषणा करनार, ज्ञानांजनशलाकाथी अज्ञानतिमिरान्वोनां नेत्रोन्मिन्न करनार, आत्मानी शुद्धि