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संपादकीय निवेदन
जयन्तु जिनवराः ।
नमो उवज्झायाणं ।
परमाराध्य परमोपास्य, प्रातःस्मरणीय, पूज्यपाद साधुशार्दूल, तार्किकशिरोमणि, न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजना जीवन अने कवनथी संकलित 'न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीयशोविजय स्मृतिग्रन्य' नुं संपादन कार्य सद्भाग्ये मारा शिरे आयुं, अने आजे ते कार्य शासनदेव - गुरुनी कृपाथी, मित्रमुनिवरो, विद्वानो अने अन्य सहायकोनी शुभेच्छायी पूर्णाहुतिने पण पायुं, एमाटे आनंद थाय छे अने लांचा समयधी सेवेला स्वप्नानो एक भाग आकार छे छे, तेथी संतोष प्रगटे छे.
रसोई गंधता घणुं धणुं कष्ट अनुभवाय छे, पण ज्यारे ते तैयार थाय छे त्यारे, तेना आनंदमां पूर्वक्रियानुं कष्ट के खेद विसारे पडे छे. एमांय रसोई जो सुंदर, स्वादु अने पक बनी होय तो तेनो संतोप अने आनंद कोई जुदो ज होय छे. पण जो रसोई असुंदर, बेस्वादु अने अपफ बनी होय त्यारे तेनो असंतोष अनं खेन्द्र रहीं जाय है. मारा माटे पण कईक एवं ज चन्युं छे. प्रारंभथीज प्रेसना प्रतिकूल संजोगो, खंतीला कार्यकरनो अभाव, एटले काम टंचायुं श्रायु, आशातीत विलंब तां एनी पाउळ निराशा आवी अने पुणे नानोशो कंटाळो पण ऊभो कयों, परिणामे आ अंकने अंगे सेवेलं स्वप्नं पूर्ण आकार न ई शकधुं, तेटलो विपाद है. छतांय अन्तःसामग्रीनुं जीवंत चैतन्य मारा विषादनी विस्मृति करावे छे.
स्मृतिग्रन्थमांशुं छे ? आ स्मृतिग्रन्थ विभागमां बहेंनी नांखवामां आव्यो है: पहेला विभागने 'महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी जीवन कवनदर्शन' नाम आप्णुं हे. आ विभागे ३२|| फोर्म एटले २६० पृष्टो रोक छे. बीजा विभागने 'अन्यविषयक निबन्धोए नामी र क्यों है. विभाग, लगभग १० फोर्म एट ७५ पृष्टमां समान भाग है, प्यार पछी वीट श्रीयुत नागकुमार ना० माती तथा श्रीयुत जमभाई जैनना संपादन नीचे पू. उ. श्रीयशोविजयगुरुमंदिर प्रतिष्ठा भने श्रीमद् यशोविजयसारस्वत सत्रनो गृविस्तृत देवाल, तार-टपालना संदेशाओं नात्र गे
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