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-प्रवचनसार:अथासद्भुतपर्यायाणां कथंचित्सद्भुतत्वं विदधाति
जे णेव हि संजाया जे खलु णट्ठा भवीय पजाया । .. ते होंति असन्भूदा पजाया णाणपञ्चक्खा ॥ ३८ ॥
ये नैव हि संजाता ये खलु नष्टा भूत्वा पर्यायाः।
ते भवन्ति असद्धृताः पर्याया ज्ञानप्रत्यक्षाः ॥ ३८ ॥ ये खलु नाद्यापि संभूतिमनुभवन्ति, ये चात्मलाभमनुभूय विलयमुपगतास्ते किलासद्भूता अपि परिच्छेदं प्रति नियतत्वात् ज्ञानप्रत्यक्षतामनुभवन्तः शिलास्तम्भोत्कीर्णभूतभाविदेववदप्रकम्पार्पितस्वरूपाः सद्भूता एव भवन्ति ॥ ३८ ॥ त्पर्येण ज्ञातव्य इति तात्पर्यम् ॥ ३७ ॥ अथातीतानागतपर्यायाणामसद्भूतसंज्ञा भवतीति प्रतिपादयति-जे णेव हि संजाया जे खलु णट्ठा भवीय पज्जाया ये नैव संजाता नाद्यापि भवन्ति, भाविन इत्यर्थः । हि स्फुटं ये च खलु नष्टा विनष्टाः पर्यायाः । किं कृत्वा । भूत्वा ते होंति असन्भूदा पज्जाया ते पूर्वोक्ता भूता भाविनश्च पर्याया अविद्यमानत्वादसद्भूता भण्यन्ते । णाणपञ्चक्खा ते चाविद्यमानत्वादसद्भूता अपि वर्तमानज्ञानविषयत्वाद्व्यवहारेण भूतार्था भण्यन्ते, तथैव ज्ञानप्रत्यक्षाश्चेति । यथायं भगवान्निश्चयेन परमानन्दैकलक्षणसुखस्वभावं मोक्षपर्यायमेव तन्मयत्वेन परिच्छिनत्ति, परद्रव्यपर्यायं तु व्यवहारेणेति । तथा भावितात्मना पुरुषेण रागादिविकल्पोपाधिरहितखसंवेदनपर्याय एव तात्पर्येण ज्ञातव्यः, बहिर्द्रव्यपर्यायाश्च गौणआकार होजाता है, वहाँपर वस्तु वर्तमान नहीं है । तैसे निरावरणज्ञानमें (जिसमें किसी तरहका आच्छादन न हो, विलकुल निर्मल हो ऐसे ज्ञानमें ) अतीत अनागत वस्तु प्रतिभासे, तो असंभव नहीं है। ज्ञानका स्वभाव ही ऐसा है। स्वभावमें तर्क नहीं चल सकता ॥ ३७॥ आगे जो पर्याय वर्तमान पर्याय नहीं हैं, उनको किसी एक प्रकार वर्तमान दिखलाते हैं-[हि] निश्चय करके [ये पर्यायाः] जो पर्याय [नैव संजाताः] उत्पन्न ही नहीं हुए हैं, तथा [ये] जो [खल] निश्चयसे [ भूत्वा ] उत्पन्न होकर [ नष्टाः ] नष्ट होगये हैं, [ते] वे सब अतीत अनागत [पर्यायाः] पर्याय [असद्भूताः] वर्तमानकालके गोचर नहीं [भवन्ति ] होते हैं, तो भी [ज्ञानप्रत्यक्षाः] केवलज्ञानमें प्रत्यक्ष हैं । भावार्थजो उत्पन्न नहीं हुए, ऐसे अनागत अर्थात् भविष्यत्कालके और जो उत्पन्न होकर नष्ट होगये, ऐसे अतीतकालके पर्यायोंको असद्भूत कहते हैं, क्योंकि वे वर्तमान नहीं हैं। परंतु ज्ञानकी अपेक्षा ये ही दोनों पर्याय सद्भूत भी हैं, क्योंकि केवलज्ञानमें प्रतिविम्बित हैं।
और जैसे भूत-भविष्यतकालके चौवीस तीर्थंकरोंके आकार पाषाण (पत्थर) के स्तंभ (खंभा) में चित्रित रहते हैं, उसी प्रकार ज्ञानमें अतीत अनागत ज्ञेयोंके आकार प्रति