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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंका-दारः ६८५ ना अरिहंतचैत्य एटले मूलनायक निश्रित तथा सर्वलोक चैत्यनिश्रित श्रुतज्ञान निश्रित अनुक्रमे त्रणत्रण थुइना जोडापण पाटण प्रमुखना नंमारोमां पूर्वाचार्योंना करेला घणा देखवामां आवे ते सर्व थुइयो ना जोडा तो ग्रंथ गौरवना जयथी इहां लखता नथी; तो पण केटला एकत्र थुइयांना जोडा श्री हरिनइसूरिजी तथा सुधर्म त पागच्चाधिराज श्री प्रद्युम्नसूरिजी प्रमुख स्वगीय परगीय प्राचार्यांना करेला नव्य जीव निरापे की जीवोने ज्ञापन करवाने लखीए बीए; त्यां प्रथम श्री पहिल्लपुर पाटनगरे फोफलवाडा प्रमुख नांमागारे प्राचीनाचार्य कृत पडावश्यक विधिना जीर्ण पुस्तकमां जिन चैत्यवंदन विधिमा श्री हरिनइरिजीकृत संसार दावानी त्रण थुए करीनेज चैत्यवंदना लखीने, ते जो कोइने जोवी होय तो ते परत पण मारी पासे बे, ते जोइने शंका निवर्त्तन करवी तथा विरह शब्दांकित श्री महावीर स्वामी संबंधनी श्री हरिनसूरिजी कृतत्रण थुइयो लखिए बीए ॥ ॥वीरंदा मंदंजगजीवणाहं, दित्तसु चिंसुहसंपवाहं, इतिग्गिजालावलिवारीवाहं, मामिव विचिणाहं ॥ १ ॥ संसारसारवणेवरजाणतुल्ला, डुकम्ममहोकिरसंतिमल्ला; देविंद पुपवरासयलाजि गांदा, मित्तधंतहरणे जगतिदिशांदा || २ || निग्गंधाचरण
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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