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________________ ६७ परिच्छेदः १६ तथा सघलाए जीवना मार्ग साधनयोग सामान्ये कुशल व्यापार ते प्रते अनुमाउं; मिथ्यादृष्टिना पण गुणस्थानकनी अनुमोदना सम्यग् विधि पूर्वक शास्त्रने अनुसारे हो ॥३॥ तथा पंचमनिशावदधिकतरोनौतकश्चरकपरि व्राजकादिधर्मस्तस्यमिथ्यात्वतमोनृत्वोपतादृक्दमाशमें प्रियदमनसर्वजीवानुकंपापरिणामनवनिर्वेदादिरूपाधिक्योद्योतकत्वात् एताराधकास्तामलिशष्यादयो बहु श्रुक्ष्परिणामाः प्रतिपादिताश्चागमेपितिनपदेशरत्नाकरे. एनो अर्थ स्वेतपंचमीनी रात्रिनीपेरे अधिकतर नद्योत क चरक परिव्राजकादिकनो धर्म ने, जे माटे ते धर्मने मिथ्यात्व रूप अंधकारे व्यापवापणु थए थके पण तथा विध दमा उपशम यिदमन सर्व जीवदया परिणाम नवनिर्वेदादिरूप अधिक नद्योतकपणा थकी ए धर्मना अाराधक तामलिषीश्वर प्रमुख घणा शुक्ष्परिणामवं त सिझांतनेविषे कह्याडे, ॥॥ तथा पावंतिजसंथसमं जसावि वयरोहिंजेहिंपरसमया तुहसमयमहोबहिणो तेमंदाबिजनिस्संदा ॥४१॥ इति धनपाल पंचाशिकायां॥ ___ एनो अर्थ विसंस्थलपणे परना सिक्षांत चंद सूर्य ग्रहणादिक रूप जेणे वचने करीने यश पामे डे, ते व. चनमंद स्तोक प्रकाशक ताहरा सिहांतरूप महासमुन्ना बिंननो रस ॥५॥ तथा सवप्पवायमूलं ज्वालसंगंजन
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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