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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ६६१ वली किया शास्त्रमा एवो पात लख्योने के सामायिक प्रतिक्रमणमां पुत्र कलत्रादिकनी याचना तथा वैरी दलन निमित्ने समदृष्टि देवताना तथा देवदेवता प्रमुखना कायोत्सर्ग करतां अने तेनुनी थुइ करतां पाप नथी लागतुं ते अमने बतावी द्यो?॥
इति श्री चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारे अपरनानि चतुर्थस्तुति कुयुक्ति निर्णयच्छेदन कुठारे श्रुतस्मृछि वा देवावग्रहाझा निमित्त पादि प्रमुख दिवसे श्रुत क्षेत्र देवतादि कायोत्सर्ग निदर्शनो नाम पंचदशःपरिच्छेदः॥१५॥
अथ श्री पोडशः परिछेदः॥
पूर्वपदः ॥ सम्यग्दृष्टि वैयावृत्त्यादि करनेवाले देवतायोंका कायोत्सर्ग करना और चोथी थइमें तिनकी स्तुति करणी तिस्से जीव सुननबोधी होनेके योग्य महा शुनकर्म उपार्जन करताहै, और तिनकी निंदा करनेसें जीव उर्लनबोधी होने योग्य महापाप कर्म उपार्जन करताहै; असापाठ श्री ठाणांगजी सूत्रमें है. ॥ __॥उत्तरपदः ॥ ए पूर्वोक्त पूर्वपदीनु लखवं सर्व मिथ्या केमके श्री वाणांगजी सूत्रमा तो देवोना अवर्ण