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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ६५५ कारण के श्रुतदेवीनो कायोत्सर्ग श्रुत समृदि निमित्ते जिनवाणी आराधक पुरुष प्राचरणाए निरंतर कायोत्सर्ग करे तो अटके नही, परंतु देवदेवादिकनो कायोत्सर्ग आचरणाए , ते पूर्वाचार्योना ग्रंथोना अनिप्रायथी साधुने अवग्रह याचन निमित्ते ने, अने अवग्रह याचन करी पनी अवग्रह दातानि स्तुति करवी, तेथी अगीयारमो उत्पादना दोष संनव थाय डे, तेमज ग्रंथांतरमां का बे. ते पाठ ॥ खित्तावगाहको खित्तसूरीसंथवकरंताणं साहणवसहिदोसोउय्यायएएगारसमो॥१६॥तथाअर्वाचिन कालवर्ति न्याय सरस्वति बिरुद धारक महोपाध्याय श्री यशोविजयजी पण प्रतिक्रमण गर्नहेतु स्वाध्याय मांपूर्वोक्तन्यायने अनिपाए अवग्रह याचन निमित्ते देत्र देवादिकनो कायोत्सर्ग लखेडे, पण स्तुति लखता नथी. ते पाठ ॥ तीर्थाधिपवीरवंदनरैवतममनश्रीनेमितिल सार च० अष्टापदनतिकरीयसुयदेवयाकानस्सग्गनवकार च० देवदेवताकानस्सग्गश्मकरो अवग्रहयाचनहेत च० पंचमंगलकहीपंजिसमासगमुहपतीवंदनहेतच॥॥ इहां कोई कहेशे जे काउस्सग्ग कह्यो, त्यां स्तुति तोवीज जेम पाहुणाने रोटलानु कहुं तो शाक तो आव्युंज, तेने कहीए के हे देवाणु प्रिय! टुंढिया पण कहेले के मुहपत्ति बां
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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