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________________ ६४६ परिजेदः १५ प्रथम गणधर ॥३॥अने चतुर्विध संघ एत्रणे अर्थ जाणवा, पण श्रीतीर्थंकर देव तो तीर्थशब्दे श्रुतझानने परम नपगारी गुणाधिक जाणीने नमस्कार करे, अने सामान्य केवली ते तीर्थंकरने तथा तीर्थ शब्दे करी प्रथम ग धरने प्रवचनना प्ररूपक तथा प्रवचनना कर्ता ए अ. पेदाए गुणाधिक जाणी नमस्कार करे अने यावत् निरतिशयवंतसाधु ते सातिशयवंत साधुने गुणाधिक जाणी तीर्थशब्दे नमस्कार करे, पण गुणहीनने नमस्कार करे नहीं; अने चतुर्विध संघने नमस्कार दे ते पण श्रुतनेज जे केमके श्रुतनाग्राधेयथीज चतर्विध संघने तीर्थ कह्यो डे तेथी नमोलोए सवसाहुणं ए पाठमां शिष्य गुरु नमस्कारवत् तीर्थ शब्दे करी चतुर्विध संघने समुदायवाची नमस्कार संजवे ने, पण जूदा जूदा नाम पाडी नमस्कार संनवतो नथी; अने जो जूदा १ नाम पाडी नमस्कारनो संनव करीए तो साधु श्रावकने नमे अने श्रावक साधुने नमे ए व्यवहार जिनशासनमां देखातो नथी. तेनो लोप थाय केम के महाव्रतनी धारण करनारी सदृश गुणगणे रही साध्वीजीने पण साधु नमता नथी, तो हीन गुण स्थानके रह्या श्रावकादिकने केम नमे? अने हीनगुणस्थानके रह्या श्रावकादिकने न नमे तो अवती गुणस्थानके रह्या देवदेवीने तो नमेज केम? अर्थात् नज
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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