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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंको झारः ६४५ ए पाठनो परमार्थ एडे जे गौतमस्वामीए पुग्धं के हे जगवान! तीर्थ संघरूप ते तीर्थशब्दनो वाचक के तीर्थंकर तीर्थशब्द वाचक बे? एम पूरे उत्तर प्राप्यो जे अरिहंत ने ते तो तीर्थना प्रवर्त्तावनारा ने अने तीर्थ तो कमादि गुणे व्याप्त एवो चतुर्वर्ण संघ रूप डे तेने चतुर्वर्णाकीर्ण कहीये कोइठेकाणे "चनवहसमणसंघे"एवो पाठ तेनो पण अर्थ सुगम एटले च्यार वर्ण साधु ॥ १॥ साधवी ॥२॥ श्रावक ॥३॥ श्राविका ॥ ४ ॥ ए तीर्थ ने तीर्थंकर कर्ता ले ते तीर्थ नथी, ए प्रश्नोत्तरमा तीर्थशब्दे चतुर्विध संघ कह्यो, तेमा प्रवचन रहयुंडे माटे प्रवचननो प्रश्नपूछे बे के हे जगवन् प्रवचन ते प्रवचन बे, के प्रावचनी ते प्रवचन प्ररूपनारो प्रवचन जे? ए प्रश्न तेनो उत्तर. हे गौतम! अरिहंत तो निश्चे प्रवचनना प्ररूपक डे ते प्रवचन नथी. प्रवचन तो वली बार अंगगणी करंमियो आचारां गादिक ते प्रवचन .॥ ए पातमा प्रथम प्रश्नोत्तरमा तीर्थशब्दे चतुर्विध संघ कह्यो, बने लगतोज प्रवचननो प्रश्नोत्तर कह्यो बे ते या धाराधेय नावसंबंधे करी चतुर्विध संघने तीर्थ कह्यो संनवे ,तेथीजआवश्यक वृत्त्यादिकमां प्रवचन ते श्रुतज्ञान तथा प्रवचनना का प्रथम गणधरने तीर्थ शब्दे करी तीर्थ ग्रहण करयाने, माटे तीर्थशब्दे॥१॥ श्रुतझान॥२॥
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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