SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ६२७ चित जे जे निरंतर श्रुतसमुच्ने विषे नक्तिवंत तेमनां श्रुत अधिष्टायिका देवता ज्ञानावरणीय कर्म समूहने क्य करो. ए वाक्यार्थ थायडे व्याख्यानांतरमां श्रुतरूप देवता ते श्रुतने विषे नक्तिवंतोनां कर्मनो नाश करो, ए अर्थ तो रूडो प्रतिपादन थतो नथी, केमके श्रुतनी स्तुति विषे तो पूर्वे बहु प्रकारे कह्यो, ते कारण माटे एम सिझ थयुं के अरिहंत पादीक श्रुत देवता ते इहां ग्रहण करवा. यहां टीकाकारे प्रामकारकने का के तमे श्रुत जक्ति कर्मक्य कारणपणे करीने श्रुतरूप देवता एवो व्याख्यानांतर मांनशो तो श्रुतने विषे नक्तिवंतोना कर्म खपावो, ए अर्थनी सम्यक् उतपत्ति न थाय. केमके श्रुत स्तुति पूर्वे बहु करी . माटे अर्हत्पादिकी श्रुत देवता ग्रहण करवी एटले अर्हत्पथी प्राप्त थइ एवी जिनवाणी रूप श्रुताधिष्टाता एटले श्रुत व्यापक देवता यहां ग्रहण करवी पण श्रुतरूप देवता तथा व्यंतरादि प्रकारनी ग्रहण न करवी, केमके श्रुत ते अर्हत् प्रवचन तेने विषे अधिष्टातृ एटले व्यापक तेने श्रुताधिष्टात्री देवता कहीए. ते जिनवाणी ते विषयि शुन प्रणिधाननो पण स्मरण करनारने कर्मक्ष्य हेतुपणे करीने इष्ट सिद्धि थायडेमहानिशीथ सूत्रमा तेमज कझुंडे, उपसंत सर्वनावे
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy