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________________ ६२४ परिजेदः १५ मूह ते अनुयोग एटले सत्रार्थ जाणनार होय, ते श्रुतदेवताने यत्नथी वां तथा श्रीविशेषावश्यकवृत्ती. तत्पातः ॥ यस्याः प्रसादपरिवर्द्धितशुधबोधाः पारं वति सुधियः श्रुततोयराशेः ॥ सानुग्रहा मयि समी हितसिध्येस्तु सर्वशासनरता श्रुतदेवता सौ ॥ अर्थ ॥ जेना प्रसादथी वध्यो शुबोध जेमने एवा सुबुद्धिजन श्रुतजलनिधिथी पार पामे, ते माहरी समिहित एटने वांबित सिधिने अर्थे अनुग्रहसहित थान, आ श्रुतदेवता केवी ने के सर्वाना शासनमां रक्त ए. टने केवलिना मार्गमा प्रवर्ताववामां रक्त एवी, तथा पंचसंग्रह टीकामां मलयगिरी प्राचार्य श्रुतदेवीनो अर्थ एम करे . ते पाठः॥ श्रुतद्वादशांगं तद्पा देवी श्रुतदेवी तस्या प्रसादतः॥ अर्थः॥ श्रुत ते बारअंग ते रूप जे देवी ते श्रुतदेवी, तेना प्रसादथी ए प्रकरण रच्यु. एमां श्रुतरूप देवी तेने श्रुतदेवी कही ते द्वादशांग रूप देवी ॥ तथा ॥ उपचारे वाणीनो पण अर्थ संनवे तेथीजाणीए गीए के श्रृतदेवी जगवंतनी वाणी पण एकांते श्रुतनेज श्रुतदेवी माने, वाणीने श्रुतदेवी न माने, तेने पाक्षिकसूत्र वृत्तिकार प्रश्नपूर्वक जिनें वाणीरूप श्रुताधिष्ठातृ देवताने
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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