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________________ ६१७ परिजेदः १५ पडशे, ते ज्ञानी महाराज जाणे; अने पोताना क्यो पशम प्रमाणे आपणे पण जांणिये बीए तो बुध्विंत ने घणुं शुं कहेवू! इति चतुर्थस्तुतिनिर्णय शंकोझारे अपरनानि चतुर्थस्तुतिकुयुक्तिनिर्णयजेदनकुठारे पूर्वधरपूर्वाचार्यसम्म त्यात् प्रतिक्रमणायंतगोचरे विस्तारे चैत्यवंदना निषेध पूर्वक जघन्योल्लष्टा चैत्यवंदना निदर्शनोनाम चतुर्दश परिछेदः ॥१४॥ ॥ अथ पंचदश परिछेदः ॥ प्रश्नः ॥ श्रुतदेवता देवदेवता तथा नुवनदेवताना कायोत्सर्ग पूर्वाचार्य प्रतिक्रमणमा करता याव्या ते तमे केम करता नथी? ___ उत्तरः॥ पादिक चातुर्मासिक सांवत्सरिक संबंधि देवसी प्रतिक्रमणना अतमां श्रुत क्षेत्र देवता नुवनदेवताना कायोत्सर्ग जेम पूर्वाचार्य करता याव्यातेमज अमे पण करीए बीए, पण कारण विना निरंतर करता नथी. प्रश्नः॥ श्रुतदेवताने नमस्कार तथा तेनो कायोत्सर्ग शा माटे करोडो? उत्तरः ॥ श्रुतदेवतानो नमस्कार तथा तेनो कायो
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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