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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंको झारः ५७७ मयनी र जोजन कस्या पठी ३ रात्रे सुवाने समये ४ सूता उभ्या पड़ी ५ एवं सातवार चैत्यवंदनामांथी प्रथ. मनी बे प्रकारनी यथाशक्तिए नवे प्रकारनी होय ने शेष पांच जघन्य तथा जघन्यउत्कृष्ट होय ॥ तथा प्रकारांतरे श्रीप्रवचनसारोझारादिकमांसातवारनी चैत्यवंदना कही, तेमां एकवार जिन गृहनी चैत्यवंदना तो यथाशक्तिए महानाष्यादिकमां नवे प्रकारनी करवी कही बे,अने शेष वारनी चैत्यवंदना सुविहित श्री देवसूरिजी कृत दिनचर्यामां तथा श्री कालिकाचार्य संतानिय श्री जावदेवसूरिजीकृत दिनचर्या प्रमुख ग्रंथोमां जघन्योत्कृष्ट करवी कही डे, ते पाठ अनुक्रमे लखिए बीए त्यां प्रनातना प्र. तिक्रमणना अंतमा प्रथम चैत्यवंदना जघन्योत्कृष्ठ कही . ॥ते पाठः ॥ अणुसिगिति॥ श्वा मोएसिटिइत्यु. वा उपविष्टःसन् तिस्त्रस्तुतीःपरति विशाल लोचनदल मित्यादि कथं नृतास्तुतीःवईमानाः जिनेश्वर वंदनं देववंदनं कार्य ॥१॥ तथा त्रीजी नोजन समयनी जघन्यो त्कृष्ट कही . ते पाठः॥ तत्र पात्रकानि मुक्त्वा जक्ताद्यर्थं जिना न्नमतिशक्रस्तवंपत्तीत्यर्थः ॥३॥ तथा जोजनने अंते पण जघन्यउत्कृष्ट चैत्यवंदना कही बे.
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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