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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ५७५ '॥३॥ चोथी नोजन करथा पड़ी ॥ ४ ॥ पांचमी संध्या प्रतिक्रमणना प्रारंजमां ॥ ५॥ बठी रात्रेसुवाना समये ॥ ६ ॥ सातमी राते सूइ उठ्या पनी ॥७॥ ए साधुनने जघन्यथी सात वेला चैत्यवंदना करवी. अन्यथा अतिचार संनवथी श्री महानिशीथमांप्रायश्चित कडुंबे. अने श्रावकतो जे ननय काल प्रतिक्रमण करे तेने तो साधुनी पेठे सात वार चैत्यवंदना करवी, अने जे पडिक्कमणुं न करे ते पांचवार चैत्यवंदना करे अने जघन्यथी जघन्य त्रणवारतो करे॥ए बन्ने पाठमां प्रतिक्रमणना प्रायंतमां सामान्य प्रकारे एटले जघन्य उत्कृष्ट चैत्यवंदना कही ले ॥ तेमज श्री धर्मरत्नप्रकरणवृत्ति १ श्राइदिन कृतवृत्ति २ वृंदारवृत्ति ३ धर्मसंग्रह ४ पूर्वाचार्यकृत समाचारी ५ श्रीप्रद्युम्नसूरिजीकृत समाचारी ६ श्री देवसूरिजीकृत दिनचर्या ७ खरतरवृहत्समाचारी श्रीसोम सुंदरसूरिकृत समाचारी ए तथा श्री नावदेवसूरिकृत य. तिदिनचर्या १० लघुचैत्यवंदननाष्यवृत्ति ११ इत्यादि श्री देवनाचार्यकृत दर्शनशुधि वृत्ति प्रमुख अनेक जैन शास्त्रोमां प्रतिक्रमणना आयंतमा सामान्य प्रकारे जघन्यनत्कृष्ट चैत्यवंदना कही बे, पण चोथी थुइ सहित त्रण थुश्नी चैत्यवंदना स्तोत्र प्रणिधान सहित कही नथी; पण आत्मारामजी थानंदविजयजी चतुर्थ स्तुति निर्णय
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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