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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंको झारः ५७३ णना आद्यतमां केटला प्रकारनी चैत्यवंदना करवी जैन सिद्धांतोमां कही ? ॥ नत्तरः ॥ नव प्रकारनी चैत्यवंदनामांथी उत्कष्टाना त्रण नेदमांथी उनय काल यथाशक्ति जिन गृहमां कोई पण प्रकारनी चैत्यवंदना करी प्रतिक्रमणना अा. यंतमां सामान्य प्रकारे एटले जघन्योत्कृष्ट चैत्यवंदना करवी जैन शास्त्रोमां कही , ते केटलाएक जैन शास्त्रोना पाठ लखीए बीए॥ त्यां प्रथम श्री महानिशीथ सूत्रने अनुसारे श्री श्राइविधिप्रमुख ग्रंथोमांसात वरखत चैत्यवंदना करवी कही . ते पाठः॥प्रातःप्रतिक्रमणावसाने प्रथमा चैत्यवंदना गोचरीसमये चैत्योपयोगार्थ द्वितीया चैत्यवंदना नोजन समये तृतीया वरिमप्रत्याख्यानानंतरं चतुर्थी संध्याप्रति क्रमणा दौ पंचमी स्वापवेलायां षष्टी प्रतिबोधे सप्तमी सा मान्यतो यतेरहोरात्रमध्ये सप्तवेला जघन्यतोपि चैत्यवंदना कार्येवान्यथातिचारसंनवात् महानिशीथे प्रायश्चित्तना नात् ॥ तथा श्री प्रवचनसारोझारमां पण सात प्रकारनी चैत्यवंदना कही जे. ॥ते पाठः ॥ पडिक्कमणे चेहरे, जोयणसमयंमि तहयसंवरणे; पडिक्कमण सुयण पडिबोह, कालिय सत्तहा जाणो ॥२॥ पडिक्कमनगिहिणोविहु, सत्तविह पंचहा
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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