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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ५६१ तहेवनणंति जधाघरकोइलियादीसंताणनंडिंति कालं वंदित्तानिवेदंति जदिचेश्याणि अबितोवंदसि थुतियवसाणे चेवपडिहणा मुहणंतगादि संदिसहपडिलेहेमि। बहुवेलाय इत्यादि ॥
॥संदिप्तार्थः॥हमणांप्रनाते पडिक्कमणानी शी विधि ते कहे ; प्रथम सामायिक कहिने चारित्रविशुद्धि निमित्ते कामस्सग्ग, बीजो लोगस्स कहीने दंसण विशुझिने अर्थे कानस्सग्ग, त्रीजो श्रुतझान शुझिनो कामस्सग्ग तेमां रात्रिना अतिचार चिंतवे. ए कानस्सग्गनु प्रमाण शुं ते कहे .प्रथम कानस्सग्गना पच्चीस श्वासोश्वास, बीजाना पण पच्चीस श्वासोश्वास, त्रीजानुं प्रमाण नथी; एमां थ. तिचार चिंतवी सिक्षाणं थु कही पड़ी वांदे, पनी प्रा. लोयण करे पडी पडिक्कमणु पनी खामणां पढी सामायिक कही क नस्लग्ग पड़ी ते काउस्सग्गमा तप चिंत्वे,जावत् उमासी तपथी मांडी सामर्थ्य होय तेधारे.काउस्सग्गपारी ने लोगस्स कहीने गुरुने वांदिने सर्व साधुनवकार पूर्वक सर्व साथे उन्नाथ पञ्चकाण करी पनी त्रण थुइ थ. ल्प शब्दथी जग जेम घर कोलियादि जीव न न काल वांदि निवेदन करे जो चैत्य होय तो प्रथम वांदे, नही तो थुना अंतमां मुहपत्ति प्रमुख पडिलेहण करी बहु, वेल करे ॥ ए पाठमां पण चैत्य होय तो वांदे. नहीं तो