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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ५४ए नस्सग्ग करीअर्थ विचारे;गुरु साथे पड़ी कानस्सग्गपारीलोगस्स कही मुहपत्नी पडिजेहि वांदणांदे, आलोइपडिकमण सूत्र कहे,परि आचार्यादिकने वांदिने खमावे पनी करेमिनंते चारित्र शुद्धि कायोत्सर्ग पचास श्वासोश्वास नोकानस्लग्गपारी पड़ी लोगस्सकही दर्शनशुद्धि निमित्ते २५ श्वासोश्वासनो कानस्सग्ग करीपुरकरवरदी कही श्रुत शुम्झिनिमित्ते २५श्वासोश्वासनोकानस्सग्ग करी सिसाणं बहाणं कहो मुहपत्ति पडिलेही गुरुवंदन एटले वांदणा दे अंते वईमान थुइ कहे.इहां सर्वविधि सूत्र अर्थ स. हित लखोडे ते बहु ने ते आदी अंत संदेपार्थथी लखी बे ॥ ए पाठमां देवसी प्रतिक्रमणना आद्यंतमां चोथी थुइसहित चैत्यवंदना तथा श्रुतदेव देवतादि कायोत्सर्ग कह्या नथी, तथा तेमज पूर्वधराचार्यरुत श्री आवश्यक चूर्णीनो पाठ ने तेमां पण प्रतिक्रमणना आद्यतमां चोथी थ सहित चैत्यवंदना तथा श्रुत देवदेवतानां कायोसर्ग थुइ करवां कह्यां नथी, पण ग्रंथ गौरवना जयथी ते पाठ लव्यो नथी॥तथा आवश्यकनियुक्ति मूल तथा वृहवृत्तिमां कालग्रहणाधिकारे पण देवसी प्रतिक्रमणनी विधि कही . ॥ते पातः ॥ अहपुणगाहा ५३ ॥ व्या० अत्यनं तरे सूरथचमाणंतरमेव श्रावस्सयंकरेति पुनर्विशेषणेऽ
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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