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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ५३५ प्रतिष्ठादिविघ्नोपशमादिकारणे चतुर्थस्तुतिकथननिदर्शनो नाम त्रयोदशःपरिच्छेदः ॥१३॥
अथ चतुर्दशः परिच्छेदः
॥पूर्वपदः॥ प्रव्रज्याविधिमें और प्रतिष्ठादिविधिमें तो तुम पूर्वोक्तदेवतायोंका कायोत्सर्ग अरु थुइ कहनी मानते हो परंतु प्रतिक्रमणमें क्यों नहीं मानते हो तथा श्रुतदेवता देवदेवताका कायोत्सर्ग अरु तिनकि थुझ्यो कहनी क्यों नही मानते हो ॥
॥नुत्तरः॥ हे पूर्व पदिन् तमारा बेठ प्रश्ननो उत्तर एक साथेज आपीए जीए के प्रतिक्रमणना आयंते पूजा प्रतिष्ठादि कारण विना जिनगृहमां नन्नय काल त्रण थुइ ए चैत्यवंदन अर्थात् देववंदन करी साधु श्रावक प्रतिक्रमण करे, इत्यादि सर्व वात शंका समाधान पूर्वक अनेक शास्त्रोनी सादीथी नपर लखी आव्या जीए, तथापि श्री गणधरमहाराजकृत सूत्रोमां तथा पूर्वधराचा यकृत ग्रंथोमां अथवा पूर्वधरवर्तमानकालवर्ति तथा पू. र्वधरनिकटकालवर्ति बने पूर्वधरपश्चात्कालवर्ति श्राचार्योना ग्रंथोमा प्रतिक्रमण आयंत विधिमां पादिक चा. तुर्मासिक सांवत्सरिक संबंधी देवसी प्रतिक्रमणना अव