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________________ ५३४ परिजेदः १३ वखत जुलु बोले ने अने ते दुपाववा वास्ते तेने वारंवार जुतु बोलवू पडे जे तेम फकत प्रतिक्रमणमा चोथी थुइ स्थापवा माटे यद्वातदा मनमां आवे तेम वारंवार लखतां जम जेठमलजीढुंढके "कयबलिकम्मा"नो अर्थ फेरवतां संसार वधी जवानो कां पण मर खाधो नथी, तेम आत्मारामजी आनंदविजयजीए पण पूर्वधर तथा पूर्वाचार्योनुं वचन उल्लंघन करतां संसार वृद्धि थवानो किंचित्मात्र पणझरराख्यो नथी;पण सद्बुद्धिवान पुरुषोए यथार्थ जाणवू जोइए के पूर्वोक्त अनेक जैन शास्त्रोना लेखथी पूजा प्रतिष्ठादि कारणे सम्यग्दृष्टी देवतानना कायोत्सर्ग करवा, अने तेमनी थुइ कहेवी. एबे कथनमां कोइ पण जैनधर्मीने शंका रहि शकती होय के पूजा प्रतिष्ठादि कारणे सम्यग्दृष्टि देवताना कायोत्सर्ग जैनमतना शास्त्रोनां करवा कह्या बे के नथी कह्या, तो ए पूर्वोक्त शास्त्रोना पाथी निचे सिह थाय बे, के प्रतिकमणना आद्यंतमां उन्नय काल जिनगृहमांत्रण थुइए देववंदन अने पूजा प्रतिष्टादि कारणे गीतार्थ प्राचरपाए चोथी थुइ सहित त्रण थुइए साधुसाध्वी श्रावक श्राविकाने अवश्यमेव देववंदन करवू ॥ इति चतुर्थ स्तति निर्णय शंको झारे अपरनाग्निचतर्थ स्तुति कुयुक्तिनिर्णय छेदनकुगरे गीतार्थाचरणया पूजा
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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