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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ५२ए दृष्टि सुर स्मरणाधिकार १२ मो. इहां वंदणवत्तियाए न कहिएजे माटे देवता अविरतिपणाथकी वांदवा पूजवा योग्य नथी, ते माटे अन्नबससीएणं कहीए. शहां केटलाएक एम कहेले के देवतानो कानस्सग्ग करे तो मिथ्यात्व लागे, ते जतु, जेह माटे श्री हरिनसरी कृत ललित विस्तरावृत्ति मध्ये तथा श्री हेमाचार्यकृत योगशास्त्रनी वृत्ति तथा आवश्यकचूर्णिमां देवतानो कानस्सग्ग करवो प्रगट कह्यो . मनोरमा श्राविका सूदर्शन शेठने सूलिने संकट पडे, तथा सुनाए चंपानगरीनी पोल उघाडवाने अवसरे देवतानो काठस्सग्ग कीधो सानलीए बीए, तेहनगीसम्यग्दृष्टिने देवताननो कामस्सग्ग करतां दोष नहीं, समकितधारीएकारणे देवताप्राराधवा. एजावार्थ जाणवो ॥” इहां सम्यग्दृष्टि देवतानने वांदवा पूजवा निषेध्या ने पूर्वोक्त स्तुति स्तोत्ररूप शोजन स्तुति प्रमुखमां वांदवा पूजवा कह्या, तेनो ए परमार्थ ने के स्तुतियो बे प्रकारनी श्री सिइसेनदात्रिंशिकामां कही.
॥ते पाठः॥ स्तुति द्विधा प्रणामरूपा असाधारण गुणरूपाच तत्र प्रणामरूपा सामर्थ्यगम्या असाधारण गुणात्कीर्चनरूपा च द्विधा स्वार्थसंपदनिधायनी परार्थसंपदनिधायिनी च ॥
ए पाठमां प्रणाम रूप स्तुति कही त्यां प्रणाम न.