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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ५२५ प्रतिष्ठादि संघादि कार्य विना अाराधन प्रमुख करवाथी मिथ्यात्व प्रसंग दोष संनव थाय; अन्यथा न थाय; के. मके पूजा प्रतिष्ठादि संघादि कार्य कारणमां तो मिथ्या दृष्टी देवताननां पण पूजा प्रमुख बहुमान करवामां मिथ्यात्व प्रसंग दोष पूर्वाचार्योए कह्यो नथी, तो सम्यग्दृष्टी देवताननां पूजा प्रमुख कृत्य करवामां मिथ्यात्व प्रसंग दोषनो अवकाश होयज क्याथी ? केमके जैनशासन ननोमणि श्वेतपट्टाचार्य श्री हरिनसूरिजीए तथा जैनसूत्रार्थकुमुदविकाशकचंडिकाचं नवांगवृत्तिकारक श्रीमद् अजयदेवसरिजीए अनुक्रमथी श्री पंचाशक सूत्रवृत्तिमा पूजा प्रतिष्ठादि अवसरे पूर्वोक्त देवतानना पू. जादि बहमान करवां, एम पूर्वपक उत्तरपद करीने प्रतिष्ठादि अब सरे सम्यक् प्रकारे स्थापन करघु ने.. - ते पाठः॥ तथा दिसिदेवयाए.पूया सवे सिंतहय लोगपालाएं बासरणकमेण सवेसिंचेवदेवाणं ॥१॥ ॥ व्याख्या ॥ दिग्देवतादीनामिादीनां पूजार्चनं सर्वेषां समस्तानां तथा चेति समुच्चये लोकपालानां सो. मयमवरुणकुब राणा शक्रसंबंधिना पूोदिदिक्षु क्रम व्यवस्थितानां क्रमेणैव तु खड्ग १ दंम २ पाश ३ गदा ४ हस्तानामिाते अवसरणक्रमेण समवसरणन्यायेन द्वितीयप्रकरणामतेनान्ये परे सूरयः सर्वेषां चैव समस्ता
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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