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________________ ५०२ परिजेदः १३ या लोकना प्रयोजनने अर्थे करेठे, परंतु सम्यक्त सहित सम्यग् दृष्टि ब्रह्म शांत्यादिक देवताननी पूजा प्रणाम कायोत्सर्गादि जे करे , ते कां मूढ अज्ञानी करता नथी ए गाथार्थः ॥१००५॥ ___एपाठमां आशय एवो संनवेने के पूर्वकाने पादिक चानम्मासी ने संवन्चरीना देवसिक प्रतिक्रमणना अंत नागमा अाझा निमित्त तथा कोई विघ्नादिक का. रण संनव थये, साधु देव देवी प्रमुखनो कायोत्सर्ग करता अने सांप्रत कालमां अाझा निमित्ते तो तेज पादिक प्रमुख दिवसमां देत्र नुवन देवीना कायोत्सर्ग करवा, पण विघ्नोपशामिनी पूजा प्रतिष्ठादिकारणे तथा विघ्न विनाश कारणे तो जे दहाडाथी पूजा प्रतिष्ठादिकनो आरंन थाय, तथा नपश्वादिकनो संनव थाय, ते दहाडाथी निरंतर देत्रदेवी प्रमुखना पण कायोत्सर्ग साधुबोने करवा; अने श्रावकजनने तोपूर्वकालमां तथा सांप्रतकालमां पूजादि विशिष्ट कारणे तथा विघ्न विनाश कारणे समदृष्टि देवताननी पूजा पूर्वकालमां करता तेम सांप्रत कालमां पण करवी. यऽक्तं चतुर्दशपूर्वधर श्री नबाहुस्वामीजी कृत पूजाप्रकीर्णे ॥ गाथा ॥ सम्मदि देिवपूया सढोकीरइसंघहेतणा उवदत्ववारणकङ पुणो जिणबिंबपश्वाय ॥५॥
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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