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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः २५१ प्रतमा एक्कोवि नमुक्कारो इति तृतीय ए वाक्यनी ऊपर पर्याय पाठ, संघाचारवृत्तिनो, तेमां सिझादिश्लोकत्रण सुधी, केइ चैत्यवंदना माने. तेना निराकरणनेप्रर्थे या. वत्शब्दथी शक्रस्तवादिस्तोत्र प्रणिधानपर्यंत उत्कृष्ट चैत्यवंदना थाय. एटले त्रण ध्रुव श्रध्रुव थुइ कही. शक्रस्तव जिनमुनिवंदन स्तोत्रप्रार्थना प्रणिधानपर्यंत त्रण थुसहित उत्कृष्टचैत्यवंदनासुधी, नत्सर्गे साधु चैत्यमां रहे. कारणे अधिकपणे रहे. एपरमार्थग्रंथकारे जणाव्यो बे. हवे विचारकरवोजोइए के-पूर्वोक्तपूर्वधर तथा पूर्वधर अनुयायिपूर्वाचार्योना ग्रंथोमां विशेषप्रकारे विधिपूर्वक चैत्यवंदनानो प्रगटपाठ देखीने जो कोई त्रण थुइनी चैत्यवंदनानो निषेध करे तेने जैनमतनी श्रझारहित शिवाय बीजा कियाशब्देकरी बोलाववो ने एवा एवा मोटा मोटा महाशास्त्रोना प्रगटपात जे तोपण यात्मारामजा आनंदविजयजीने देखवामां आवता नथी ए कर्मनी विषमगति ले तो हवे बीजुंशुं कहे ? • इति चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारेऽपरनानि चतुर्थस्तुतिकुयुक्तिनिर्णयजेदनकुठारे पूर्वधरपूर्वधराऽनुयायिकत त्रिस्तुतिचैत्यवंदनानिदर्शनो नाम सप्तमः परिच्छेदः ॥७॥ प्रश्न-जघन्यमध्यमउत्कृष्टत्रणनेदनी चैत्यवंदना त
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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