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________________ २५० परिच्छेदः ७ धान रूप जाणवी. एटले त्रण थुइ कहीने प्रणिधाननी त्रण गाथान कहेवी. त्यारे संपूर्ण चैत्यवंदना थाय. ए सम. स्तप्रकारे विचार.सिक्षाणं बुझाणं ए त्रण गाथा कहे त्यां सुधीज रहेवानी अाझा नथी पण अधिक रहेवानी आझा ने तेथी इहां अनिनिवेश एटले कदाग्रह मूकीने.प्रवच ननुं गांनीर्यपणुं ने तेथी पूर्वापर विरोध टाली सर्वथाप्रकारे विचारवं. केमके श्हां त्रण थुइ आगत प्रणिधाननी त्रण थुइन मानियेतो, प्रणिधानप्रागममां कह्यं ते वचन केम मनाय. माटे संपूर्ण वंदना प्रणिधान पर्यंत त्रणश्लोकसुधी जाणवी. इहां कायोत्सर्ग अनंतर एटले ज्ञानस्तवना कायो त्सर्ग अनंतर त्रीजीथुश्त्रण श्लोकनी बंदविशेषरूपेमा धिक्य करीने कही. ते पहेली अरिहंतचैत्य निश्रित एक श्लोकनी, बीजी सर्वचैत्यनिश्रित बे श्लोकनी, त्रीजी श्रुतनिश्रित त्रणश्लोनी; अथवा पद अदादिके आवश्यकचूर्युक्त वईमानथुइ जाणवी. तथा सिक्षाणंबुाणं तेनी त्रणश्लोके थुइ कही ते कोक आचार्य श्रुतस्तव कायोत्सर्गने अनंतर त्रीजी चूलिकास्तुति कहीने सिमा पांबु-हाणं कही पड़ी बेशीने शक्रस्तव जावंतिप्रमुखस्तोत्र प्रणिधानपर्यंत देववंदन करेडे, ते अपेक्षाए कहीजे. ते पाठ प्रसंगे आगललखाशे. तथा धर्मसंग्रहनी जुनी
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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