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________________ २३८ परिच्छेदः ७ चितवनकरे २४ पढे नामस्तवकहेतां लोगस्स कहे समस्तसाराय दरेकरीने अस्खलितपदेकरीने पढी " सबलोएअरिहंतचेयाणं” एपाठ समस्तकहे जावत्वं दणवतीयाए त्यां पर्यंत २५ त्यारेपनी कानसग्गकरीने बीजी बे श्लोकनी इहां णवी अथवा वर्द्धमानादि सर्व जिनेंद्रनी थुइ कहेवी २६ संविग्र पूर्वोक्त विधिएकरीने सूत्र स्तव कहे एटले "पुरकरवरदें कहे " ने श्रुतनगवतन का सगमारही संस्तवेकरी स्तुतिकरे २७ अथवा त्रीजी वर्धमानादरनी त्रणश्लोकनी सारखेवर्णाक्षर जेमां एवी कर्मनिर्जरानेयर्थे मोटाशब्देकरिने कहेवी २८ पूर्वविधिकरी बेशिने शक्रस्तव कहे गुनयोगनेप्राप्तथयाउता मुक्ताशुक्तिमुद्राधारणकरीने यावत् प्रणिधानपाठपर्यत एटले जयवीयरा त्यां पर्यंत चैत्यवंदना करे २० B एप्रकारे श्रीमद्रबाहुस्वामिप्रमुख पूर्वधर पूर्वाचार्योंना ग्रंथोमां प्रगटपाठ देखवाथी समदृष्टि यपक्षपाति पुरुष तो निश्वय पोताना हृदयमां शोचकरेके पूर्वधारियोना वखतमां त्रण थुनी चैत्यवंदना चालती हती तो हवे पूर्वधारियोनी खाचरणानो निषेध करीएकांते चोथीथुइन चरणा करवी ए महानर्थनुं मूलबे तथापूर्वधर पूर्वाचार्योनी त्रणथुए करी चैत्यवंदनानी आचरणा निषेध करवावाला ने एकांते चोथि थुनी याचरणा
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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