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________________ परिच्छेदः । गल थय थुए करी देववांदे तेने शानदर्शनचारित्र बोधिलान उपजे ॥पर पुरनु॥इत्यादिकअनेकपूर्वार्थोयोना ग्रंथोमां पूर्वधरअनुयायी त्रणथुनी चैत्यवंदना कहीले तेथी जाणवू जोइए के एवा एवा मोटापुरुषोनां वचन जो कोतुबबुद्धिपुरुष न माने तो जेवा तेवा तुझबुद्धि वालानां वचन मानवावालाथी वली अधिक मूर्ख मणि ने कहेवो जोए ॥ ॥पूर्वपद॥ श्रीबृहत्कल्पनाष्यप्रमुख पूर्वोक्त पूर्वधर तथा पूर्वधर अनुयायी ग्रंथोमां त्रणथुनी चैत्यवंदना कही तेतो सामान्यविधिए साधुने उद्देशीने कही पण विशेषविधिए तथा साधुश्रावकने उद्देशीने कही नथी तो सामान्यविधिथी विशेषविधि करवू केम घटमान थाय. ___ उत्तर–हेसम्यक्यनापेदी सामान्य जे त्यां विशेष रहेनुं बे ने विशेष जे त्यां सामान्य रहेनुं बे ए न्यायथी बृहत्कल्पनाष्यप्रमुखग्रंथोमां सामान्यविशेषविधि बेठ रहेला अने सर्वक्रिया अनुष्टान शास्त्रोमांकयां लेते साधुने उद्देशानेज कह्यांडे. ॥ यज्क्तं ॥ वृंदारवृत्त्यादौ सर्वमप्यनुष्ठानं साधुमुद्दिश्य क्रियते ॥ एवचनथी साधुने अनुयायी सर्व अनुष्टान श्राव
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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