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________________ २२६ परिच्छेदः ७ थुइथी देव वांदवा तथा अवसर न होय तो एक एक थुइधी पण बधां चैत्य वांदवां एमां पण बधा चैत्यमां त्रण थुइ कहेवी कही एमज प्रतिमाशतकनी लघुटीकामां पण त्रण थुनी चैत्यवंदना कहीडे ॥ तथा श्राइविधिनीटीका श्रीरत्नशेखरसूरि कृतमां निश्राकृत श्र निश्राकृत चैत्यमां पूर्वधर अनुयायी त्रण थुनी चैत्यवंदना कही ॥ तेपाठ - तथाहि श्रीकल्पनाष्ये निस्सकमे त्यादि निश्राकृते प्रतिबदेऽनिश्राकृते च तद्विपरिते चैत्ये सर्वत्र तिस्रः स्तुतयो दीयंते यथ प्रति चैत्यं स्तुतित्रये दीयमाने वेलायाऽतिक्रमो नवति नूयांसि वा तत्र चै - त्यानि ततो वेलां चैत्यानि वा ज्ञात्वा प्रतिचैत्यमेकैकापि स्तुतिर्दातव्या एमां पण त्रा थुई एनो अर्थ एनी जापामां श्रागल लख्युंबे ते प्रमाणे जाणवुं ३६ ॥ अथ श्रादविधिनी नाषामां त्राण थुबे ॥ ॥ तेपाठ ॥ श्रीकल्पनाप्यने विषे कह्युं बे निश्रानुं करेल निश्रा विनानुं करेल एवां जे चैत्य तेने विषे सर्व dard स्तुतित्र देवी वेला घणी थाय तो वली चैत्य जाणीने एकेकी थुइ पण कहेवी १ निश्राकृत चैत्य ते शुं ग प्रतिबद्ध गनां बंधाएलां अनिश्राकृत ते वली
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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