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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः १३ नगवंते इत्यादि स्तुतित्रयं केनचिद्भएयते तत्पदाक्षाभ्यामपि वईमानं नास्तीति शेयमिति, इति वईमान स्तुतित्रयविचारः ॥ ॥नावार्थः ॥ ते थुझ्यो एक श्लोकादिक वईमान अथवा पद अदर स्वरे करीने वईमान त्रण कहीने प्रादोषिक कालग्रहण करे, प्रनातना आवश्यकने विषे वली एम कडं पचरकाण करी पवित्रण थुश्यो अल्प शब्दे करीने कहे जेम गरोली प्रमुख हिंसक जीव कवे नही पडे वांदिने कालनिवेदन करे अने जो चैत्य होय तो वांदे एम आवश्यकचर्णिमां अने अावश्यके करीने जिनेंद्र उपदेशित गुरुउपदेशे करीने त्रण थुइ कहीने प. मिलेहणा करि कालग्रहण करे एम.आवश्यक, निशीथ, व्यवहार चूर्णिमां, आवश्यककरीने तीर्थकरे गणधरोने उपदेश्यो त्यार पढी परंपराए जावत् अमारा गुरुना नपदेशे करीने आव्यो अावश्यककरीने अन्य त्राथुश्यो करे अथवा एक थुइ एक श्लोकनी बीजी बे श्लोकनी त्रीजी त्रण श्लोकनी सेनी समाप्तिकालवेलाए पमिलेहणाविधि करवो, आवश्यकचू निशीथ उ १५ चूर्णिमां वली तीर्थकरे गणधरने का त्यार पढी अमारा आचार्य उपाध्याये जेम कयुं तेम गुरु उपदेशे त्रण थुझ्यो प्रथम एक श्लोकनी बीजी बे श्लोकनी त्रीजी
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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