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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः
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वरदीवमे” इत्यादि तथा नवकार कही काजसग्ग पारे एम चारित्र तथा दर्शन ने श्रुतधर्म्मना श्रतिचार विसोधिना करनारा एटले चारित्र दर्शन ज्ञांनना तिचारनी शुद्धिना करनारा त्रण का सग्ग करवा ते करीने हिवे दर्शन श्रुत धर्मनु प्राप्त थयुं जे फल तेहने पांम्या जे पुरुष तेनुं बहुमान परमनक्तिए करी वली मंगलने खर्थे थुइ कहे "सिद्धाणं बुझाएं गाथा" इत्या विक ॥ ए पाठमां नामस्तव १ श्रुतस्तव २ सिद्धस्तव ३ ने थुइ कही तेथी केटलाक याचार्य एस्तुतित्रिकनें शास्वती थुइ मांनी ध्रुवथुश्ना देववंदन कहेबे छाने केटलाक ध्रुव ध्रुव थुनां मांनवावाला याचार्य लोगस्स प्रमुख त्रण सूत्र थुई, ने एक श्लोकिकादि वर्द्धमानं चूलिका थुइए, ध्रुव ध्रुव देववंदना मांनेडे ते एक श्लोकिकादि वर्द्धमान थुइनो विचार, विचारामृत संग्रहमां श्रीकुलमंमनसूरिजीए श्रीश्रावश्यक चर्यादिकनी साकीए एविरीते कोडे.
पाठः ॥ तान्य थुइन एगसिलोगादि वरुतियान पयारकरादिहिं वासरेण वा वरूं तेण तिमि जाणि कणं ततो पाचसियं करिति प्रजातावश्यके तुपचा तिनि थुती अप्पसदेहिं तहेव जयंति जहा घरको इलियादीसंतान छिंति कालं वंदित्ता निवेदिति जइ चेइयाणि