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परिच्छेदः ७ चार्य तेहुने मते सात श्लोक पर्यंत थुथाय तिवारे पड़ी देवेंद्र स्तव आदि लेइ स्तव होय ॥ एमज श्रीउत्तराध्ययन अवचूरीमां ॥
॥तेपातः॥ तत्र स्तवा देवेंद्रस्तवादयः स्तुतय एकादि सप्त श्लोकांता स्ततो इंटे स्तुतिस्तवाः स्तुतेः क्त्यंतत्वाप्रागनिपाते प्राप्तेपि सूत्रे प्राकृतत्वाव्यत्ययनिर्देशः ॥
एहनो अर्थ पूर्वे लिख्यो ने तेमज, एमां पण एक बे त्रण श्लोक तथा सात श्लोकनी थुइ कही॥ तथा उत्तराध्ययन लघुटीकामां पण एक बेत्रण श्लोकनी थुइ कही.
. ॥ तेपातः॥स्तवा देवेंद्रस्तवादयः एकादिसप्तश्लोकांता यत उक्तं एग उग ति सिलोगा थुझ्न इत्यादि. ____ ए पाठनो अर्थ पूर्वे लख्यो तेमज जाणवो एहमां पण त्रण थुइ ॥तथा उत्तराध्ययन वृत्तिर शहजारी तेनो
॥ पाठः ॥ स्तवा देवेंद्रस्तवादयः स्तुतयः एकादि सप्तश्लोकांता यत नक्तं एग उग ति सिलोगान थुन थन्नसिं जाव सत्तेव इत्यादि। __ए पानो अर्थ पिण पूर्वे लिख्यो ने तिमज ॥ एहमां पण एक बेत्रण श्लोकनी थुइ कहीजे ॥ तथा उत्तराध्ययनटीका तपागडीय श्रीनावविजयजी नपा