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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः
नव्यजीव मध्यस्थदृष्टियोंने जगाव थशे के आत्मारामजी आनंदविजयजी थुइनो एकांते निषेध करे ते पूर्वधर पूर्वाचार्यांना कथनथी तथा प्रवर्त्तनथी मोटो - न्याय करे ॥ प्रथमस्तुतिस्तवनु लक्षण ज्ञाननास्कर प्राचार्य श्रीमलयगिरिजी कृत व्यवहारवृत्ति खंम २ मां कबे.
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॥ तेपाठः ॥ एकश्लोका द्विश्लोका त्रिश्लोका वा स्तु तिर्भवति परश्वतुः श्लोकादिकः स्तवः ॥
अर्थः एक बेत्र श्लोकनी थुइ थाय व्यारश्लोकादि स्तव कहीए ॥ तथा थिरापद्रगन्लैकमंमन वादिवैताल श्री शांत्पाचार्य कृत उत्तराध्ययन वृहटत्तिमां पण स्तुति स्तवनुं लक्षण कह्युंडे.
॥ तेपाठः ॥ तत्र स्तवा देवेंद्रस्तवादयः स्तुतय एकादि सप्तश्लोकांताः यत उक्तं एग हुग ति सिलोगा थुइन अन्नेसिं जाव हुंति सत्तेव देविंदचवमाइ ते परं तया होंति ति ॥
अर्थ-य थुइ मंगले करीने जगवांन जीव शुं उत्पन्न करे train कहे बोधिलान उत्पन्न करे तिहां स्तव देवें द्रास्तवादिक स्तुतियो एक श्लोकथी लेइ सात श्लोक पर्यंत जेमाटे कह्युंडे एक बे त्रण श्लोकनी थुइ बीजा केइ च्या