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परिच्छेदः ७ ने सूत्र स्तव कह्यो नथी तो त्रण थुझ्ना अनुक्रममा ए सूत्र ग्रहण केंम कराय! _ उत्तर-हे नद्र श्रीमहानिशथिमां अरिहंत स्तव कहवाथी चैत्यस्तव तो आव्योज केमके अरिहंतचेयाणं ए पाठमां चैत्यशब्द कहेवाथी चनवीस वर्तमान जिननुं कथन डे अने सवलोए अरिहंतचेश्याएं मे समस्त अतीत अनागत वर्तमान तथा विहरमाण प्रतिमा रूप जिन त्रिलोक पूजनीकनुं ग्रहण ले ते बिहुँ स्थापना रूपें एकज . ___यक्तं प्राचारदिनकरेतत्पातः ॥अर्हचैत्यानां कायोत्सर्ग करोमि तेषामाराधनार्थमित्यर्थःअत्र चैत्यकथने जिनानां चतुर्विंशतिवर्तमानानां कथनं यत्र च सवलोए अरहंतचेश्याणं इति कथने समस्तानागतातीत वर्त्तमान विहरमाण प्रतिमारूपाणां जिनानां त्रैलोक्य महितानां ग्रहणं कार्यमित्याह वंदणवत्तियाए॥
॥ नावार्थः ॥अर्हतचैत्योने आराधवाने अर्थे कायोत्सर्ग करूंशहां चैत्य कहेवाथी जिन चनवीस वर्तमान नु कथन डे "सवलोए अरिहंतचेश्याणं" एकथनने विर्षे समस्त अनागत अतीत वर्तमान विहरमानप्रतिमा रूप जिन त्रिलोकपूजितोंर्नु पूजा फल ग्रहण अर्थे कहे । वंदणवात्तयाए इत्यादिपाठ ॥