SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना. मीनाथ, तमो कोना शिष्य बो? त्यारे श्र धनविजयजीए आश्चर्य पामीने प्रत्युत्तर दीधो के अमे परमपुज्याचार्य श्री विजयराजेंसूरिंजीना शिष्य बीए पण तमे (श्रावक लोक) जाणता उतां अाज ए प्रश्न करयुं तेनुं कारण शुं? त्यारे अमोए (श्रावकोए) कह्यु के श्री विजयराजेंऽसूरिजी तो आपने उपसंपद ग्राहक कहे रे,अनेआप कहोडो के अमे तेमना शिष्य बीए तेनं कारण शं? त्यारे धनविजयजीए कह्यु के श्री विजयराजेंसूरिजी कहे जे ते सत्य बे, कारण के अमे श्रीमंझपाचले पातसाह जहांगीरदत्त महा तपाबिरुद धारक श्री विजयदेवसूरिजी शिष्य न्यायचक्रवर्ति बिरुदधारक महोपाध्याय श्री कृश्नविजयजीगणि तशिष्य पं० श्री गंगविजयजीगणि तशिष्य पं० श्री ना वविजयजीगणि तशिष्य पं० श्री मोहनविजयजीगणि तशिष्य पं० श्री कस्तरविजयजीगणि तशिष्य पं० श्री लक्ष्मीविजयजीगणि तथापं० श्री चतुरावजयजीमाणिना शिष्य हता; पण पानी फरी दिदा अर्थात् नपसंपर्द ग्रहण करवानुं कारण एडे के कोइ तरेहथी गजगुरु परंपरामां शिथिलाचार असंयम प्रवृत्ति थइ जाय, अने कोई क्रियान-झार करे तो अवश्यमेव संयमीगुरुनी पासे पानी दिदा ले. एम जैनशास्त्रोमां कह्यु ले तथा च श्री जिवानुशाशनवृत्तौ श्री देवसूरिनिः प्रोक्तं
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy