________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः १५७ केटलाकमां कहीले ने निश्रा अनिश्रा कृत चैत्योमांत्रण थइ पण कहीजे ने केटलाकमां श्रत खेत्र देवीना का. योत्सर्गज कह्या पण थुइ कही नथी ने केटलाकमां कायोत्सर्ग थुइ एके पण कही नथी वली केटलाकमां कायोत्सर्ग थुइ बे पण करवां कह्यांडे एम सर्वाले ६४ तथा ६५ आशरे ग्रंथोनि पूरती सादी ने पुनः पुनः तेज ग्रंथोनां नाम लखीने ७२ ग्रंथोनां नाम लख्यां ते अन्य प्रयोजन तथा लोकोने घणा ग्रंथनां नाम बतावी नरमाववा लख्यां संनवे पण एवंथी एकांते चोथी थु सिह थती नथी ने त्रण थुइ नबपती नथी तेमाटे नव्यजीवोने आत्मारामजीना एकांत लखाण उपर दृष्टि देने वर्तवं ए श्रेय नथी पोताना बोधबीजनुं रहण करवाने मध्यस्थदृष्टिएं पूर्वाचार्योना पूर्वापरवचन पूर्वधर अनुयायि प्रमाण करी सावधनिर्वचनी खोलना करवी एज श्रेय. तितत्वम् ॥
॥तिचतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारे ऽपरनाम्नि चतुर्थ स्तुतिकुयुक्तिनिर्णयछेदनकुठारे सूत्रागम अर्थागम तथा पूर्वधरगीतार्थकत सूत्रागम अर्थागम बहुश्रुतगीतार्थकृत अर्थागमनाचरणाया त्रिस्तुत्या चैत्यवंदनाप्रश्नोत्तरे तथा चतुर्थस्तुतिनिर्णययोक्त ग्रंथ,ग्रंथकर्तमान्यनिदर्शनो नाम षष्टः परिच्छेदः ॥६॥