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________________ १३६ परिच्छेदः ६ मान त्रण थुइएं देववंदना करी सि-इस्तवने यंते | सिरिसंति १ संति २ पवयण ३ जवण ४ खेत्र. देवी ५ वेयावच्चगरादि कायोत्सर्ग थुइ नंदिपूजा अवसरे कह्यांचे ते प्रमाणे आत्मारामजी आनंदविजयजी मानता नथी ने करता पण नथी. ए समाचारी ग्रंथ कर्ता अजयदेवसूरि रुद्रपल्लियगडमां पद्मचंद्रगणीना शिष्य विजयचंद्रसूरि तेलंना शिष्य अनयदेवसूरि तथा गुणचंद्रसूरिना शिष्य तेजगढमां बीजा अनयदेवसूरि थया तेसुना राज्यमां अथवा तेलंएं, ए समाचारग्रंथ बनाव्योडे पण श्रीजिनेश्वरसूरिजीना शिष्य नवांगवृत्तिकारक श्रीमानयदेवसूरिना राज्यमां तथा तेवंनी करेली एसमाचारी नथी ने आत्मारामजी यानंदविजयजी चतुर्थस्तुतिनिर्णय पृष्ट १०७ मां *श्रीअनयदेवसूरिने तथा तिनके शिष्यने देवसि पमिक्कमणेकी थादिमें च्यारथुइस चैत्यवंदना करनि कहीहै जर श्रुतदेवता क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करना तथातिनकिथु करनी कहिहै* इ. त्यादिक बलनां वचन लखी जोला लोकोंने जम घालवा जिनवल्लनसूरिना गुरु नवांगतिकारक - -
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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