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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः १३५ यराय इत्यादि प्रणिधानांत उतकृष्ट चैत्यवंदना थाय अन्य आचार्य बेवार चैत्यवंदनाए प्रवेशत्रण, निक्रमण बे, ए पांच शक्रस्तवे युक्त उतकृष्ट चैत्यवंदना मांने एरीतें त्रण तथा च्यार थुइए जिनगृहमां चैत्यवंदना कहीले वली राइसमिक्कमणना विधिमां सिसाय कहीने नगवानादि च्यार वांदवा | कह्या ने देवसी पमिक्कमणामां असमाय नुड्डा | वणिकायोत्सर्ग करी हा आवश्यकनी मुहपत्ति पमिलेहवी कही ते प्रमाणे आत्मारामजी मा नता नथी ने करता पण नथी तो ए ग्रंथ मान्यो केम कहेवाय. | ६ ॥ ५५ ॥ सामाचारी अनंयदेवसूरिकृत.
एमां श्रावकने सामायिक लेतां प्रथम सामायक उच्चरी पडे ईरियावही करवी कही ने प्र. तिक्रमणना आयंतमा सामान्य एटले जघन्य प्रकारे चैत्यवंदना करवी कही तथा प्रतिक्रमणमां श्रुत खेत्र देवीना कायोत्सर्ग कह्याले पण थुश्यों तथा शांतप्रमुख कहेवां कह्यां नथी ने सम्यक उच्चरवाने अवसरे नंदिविधि करतां वाई
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