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चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः
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वृत्ति, एमां मूलमां तथावृत्तिमां पूजादि विशिष्ट कार जिनगृहमां योथीथुइ श्राचरणाए कहीबे नेत्र थुइ सूधी जिनमंदिरमां रहेवुं ते उपरांत कारण विना वर्ज्य ने प्रतिक्रमणना प्रादितमां सामान्य प्रकारे चैत्यवंदना कहीबे पण च्यार थुएं कही नथी श्रुतदेवता ने खेत्र देवताना कायोत्सर्ग विघ्नविदलन निमित्ते कह्याबे ते प्रमाणे श्रात्मारामजी मानता नथी ने एग्रंथनि, वृत्तिना कर्त्ता विक्रम संवत् १२७२ मां थयेला सिद्धसेनसूरीबे पण सिइसेनदिवाकर कहेबे ते न जांणवा.
५१ ॥ ७२ ॥ श्रावश्यकचूर्णी विजयसिंह कृत. एम आत्मारामजी श्रानंदविजयजीएं लोकोंने नरमाववा लख्युं ते जुतुंबे केम के एग्रंथनुं नाम तो श्राप्रतिक्रमणचूर्णि विमक सं० १९०३ मां थयेला चंद्रगीय विजयसिंहाचार्यकृत बे एमां सामान्यप्रकारे एटले जघन्य प्रकारें पक्किमणाना आदिमां श्रावकने चैत्यवंदना कहींदें परण चोथी थुइ तथा श्रुतक्षेत्रदेवीना कायोत्सर्ग तथा थुइकर वि कहि नथी नें प्रतिक्रमणपर्यंत मंगल त्रणथुइ