________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः १०५ प्रश्न-आगमाचरणाएं डे तो सूत्रागमधाचरणाए बे के अर्थागम आचरणाए .
उत्तर-सूत्रागम ने अर्थागम ए बिहूं आचरणाएंजे.
प्रश्न-सूत्रागम अर्थागम एबिहूं आचरणाएं ने तो पूर्वधर गीतार्थकत् सूत्रागम अर्थागम आचरणाएंजे के बहुश्रुत गीतार्थकत् सूत्रागम अर्थागम आचरणाएं डे..
उत्तर-पूर्वधर गीतार्थकृत सूत्रागम अर्थागम प्राचरणाएं पण अने बहुश्रुतगीतार्थकत अर्थागम आचरगाए पण बे.
प्रश्न-पूर्वधर गीतार्थकत सूत्रागम अर्थागम तथा बहुश्रुत गीतार्थकृत अर्थागमाचरणाए चैत्यवंदनामां त्रण स्तुति सिने तो, आत्मारामजी यानंदविजयजीए चतुर्थस्तुतिनिर्णयग्रंथ श्या अर्थे बनाव्यो.
उत्तर-पूर्वधर गीतार्थकृत सूत्रागम अर्थागम तथा बहुश्रुतगीतार्थकृत अर्थागमना प्रगट पातथी चैत्यवंदना त्रस्तुतिए करवी सिह थायडे पण जीव पदपातमे तथा दृष्टिरागमे पज्यो थको शुंशु असत्यनाषण न करे, अर्थात् करेज. तेथी आत्मारामजी आनंदविजयजीपण पोतानो बणावेलो जैनतत्वादर्श तेमां चैत्यवंदनामां त्रस्तुतिकरवीलखीने हवे राधनपुरना केटलाक