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चतुर्थस्तुतिनिर्णय शंकोद्धारः
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बीजी यागम निषेध क्रिया प्राचीन जने श्राचरेली पण "विधियुक्त ए न करवी धर्मिजनोए” एम निध प्रवृत्तिमां प्रवर्त्ते ने । विषे । चैत्यकार्य स्त्रांत्र बिंबकारणादि पूर्वपुरुष परंपराप्रसिद्ध रूढिनेविषे एटले जिन गृहमां अनेक बिंब कराववां ने एक बिंब मोटु करी मू ल नायक थापवा वली विविध प्रकारे पूजा स्नात्रादि न छव करवां देवगृहमां देववंदन करवां इत्यादि पूर्व पुरुष परंपराए करता होय ते निषेधी अन्यथा करे ने बीजो ते परमाणे विधिकरतो होय तेहने कहे. पूर्वरूढीतो
विधि हमणानी प्रवर्त्ति विधिबे. एम कहीने पूर्वाचार्योंनी मर्यादा निषेध करावे एहवा माहासाहसिक दुःखमा कालमां घणा देखायडे. ए गुरुनो प्रतिउत्तर थयां थकां शिष्य प्रश्न करेले . के हेस्वामिन् तेधर्मार्थियोनि स्वमति विकल्पितक्रिया, सर्वप्रयले करीने, जे प्रवर्त्ति ते गीतार्थोने प्रशंसवा जोग्यले के नथी ?
तिवारे गुरुकडे. ते स्वमत विकल्पोनी प्रवर्त्ति प्रतें श्रागमना प्रत्यादर करवावाला विश्रुश्रावंत पुरुषो श्रुतमां कहेलीजे प्रवर्त्ति, ते विना बीजी प्रवर्त्तिने न प्रशं से. बहुमान करे. एतलो विशेष जे, ते प्रवर्त्तिने हृदयमां अवधारणकरी, मध्यस्थनावे देखीने श्रुत प्रनुरूप एतले सिद्धांतथी मलती यथा सुत्रमां कहेलि, तेवीज रीते -