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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धारः . ५५ जनोमें, तेहने जीत कहीए. एटले पूर्वधरोना अवसरमा जे आचार वर्त्ततो हतो ते जीव्यो कहीए. ते पूर्वधरोंनो आचार, पूर्वधरादिके पंचांगी तथा पंचांगी अनुसार प्रकरणादिकमां गुंथ्यो, ते वर्तमानमां वर्नेले. तेहने जीवे ने कहीए. अने ते पंचांगीअनुसारे आगामीकाले, श्री अप्रसहसूरि यावत् प्रवर्तशे तेहने जीवशे कहीए.ते जीते करीने आचारनुं प्रवर्त्तवं, तेहने जीताचरणा कहीए. ते अनुसारे हिंसारहित, शुनध्याननी नत्पन्नकरवावाली, कियाकालमें कियाघाचार्ये आचरी, एहवी खबर न होय तेहने अज्ञातमूल आचरणा कहीए.॥ जेम श्रीहरिनद्राचार्यकृत पंचवस्तुकोक्त प्रतिक्रमण विधिमां पर्वे वईमान त्रस्ततिसधी प्रतिक्रमण स. माप्ति करी, थोमी वेला गुरुपासे विश्राम करी, कता ने हमणां स्तवन स्वाध्याय पर्यंत प्रतिक्रमणनी समाप्ति करी उठे. ए आचरणानी खबरनथी के, कियाकालमें किया आचार्ये चलावी. एहवी अझातमूल निरवद्य आचरणा होय, तेहने सूत्रप्रमाणे प्रमाण करवी. इति नाष्यगाथावतरणं॥ सूत्र अनिषेध, निरवद्य आचरणा, सूत्रमुजब अं. गीकार करवी कही, पण गाढकारण विना रात्रे विहार
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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