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परिशिष्ट १
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अवतरण
स्यल
पृष्ठ-पंक्ति चित्रसारी न्यारी, परजंक न्यारौं, सेज न्यारी, चादरि भी न्यारी, ईहाँ जूठो मेरी थपना । अतीत अवस्था सैन, निद्रावाहि कोऊ पै न, विद्यमान पलक न, यामै अब छपना । स्वास औ सुपन दोउ, निद्राकी अलंग बुझे, सूझै सब अंग लखि, आतम दरपना । .. त्यागो भयौ चेतन, अचेतनता भाव त्यागि, भाले दृष्टि खोलिकै, संभाल रूप अपना ॥ [समयसार-नाटक निर्जराद्वार १५ पृ. १७६-७]
६१३-२५ चूणि भाष्य सूत्र नियुक्ति, वृत्ति परंपर अनुभव रे। [आनन्दघन चोवीशी-नमिनाथजिन स्तवन] ६७८-३ जंणं जंणं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अप्पडिबद्ध [आचारांग?
२२२-३१ जबहीते चेतन विभावसों उलटि आपु; समै पाई अपनो सुभाव गहि लीनो है । तबहीं तें जो जो लेने जोग सो सो सव लीनो जो जो त्याग जोग सो सो सब छांडि दीनो है। लेवेकों न रही ठोर, त्यागीवेकों नाही और, बाकी कहा उवर्योजु, कारज नवीनो है। संगत्यागी, अंगत्यागी, वचनतरंगत्यागी, मनत्यागी, वुद्धित्यागी, आपा शुद्ध कोनो है ।। [समयसार-नाटक सर्वविशुद्धिद्वार १०९ पृ० ३७७-८]
३२२-१३ जारिस सिद्धसहावो तारिस सहावो सव्वजीवाणं । तम्हा सिद्धतरुई.कायव्वा भव्वजीवेहिं ।
[सिद्धप्राभृत]
५८२-९ जिन थई जिनने जे आराधे, ते सही जिनवर होवे रे । भुंगी इलिकाने चटकावे, ते भंगी जग जोवे रे ॥ [आनन्दघन चोवीशी नमिनाथजिन स्तवन]
३१७-८; ३४४-१८; ३४६-१४, ३४७-२५ जिनपूजा रे ते निजपूजना (रे प्रगटे अन्वय शक्ति । परमानन्द विलासी अनुभवे रे, देवचन्द्र पद व्यक्ति ॥) [वासुपूज्यजिन-स्तवन-देवचन्द्रजी] ५८२-१३ जीव तुं शीद शोचना घरे ? कृष्णने करवू होय ते करे । चित्त तु शीद शोचना घरे ? कृष्णने करवू होय ते करे ।
३८०-१३ [दयाराम, पद-३४ पृ० १२८ भक्तिनीति काव्यसंग्रह]
३८०-१३ जीव नवि पुग्गली नैव पुग्गल कदा, पुरंगलाघार नहीं तास रंगी। परतणो ईश नहीं अपर अश्वर्यता, वस्तुधर्मे कदा न परसंगी।
[सुमतिजिन-स्तवन-देवचन्द्रजी]
३२०-३ जूवा आमिष मदिरा दारी, आहे(खे)टक चोरी परनारी। अई सप्त व्यसन दुःखदाई दुरितमूल दुरगतिके जाई [भाई] । [समयसार नाटक साध्यसाधकद्वार २७, पृष्ठ ४४४]
६८७-२१