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________________ भाभ्यंतर परिणाम अवलोकन-संस्मरणपोयी ३. ८४9 संस्मरण-पोथी ३ [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ३] सर्वज्ञ ॐ नमः जिन वीतराग . सर्वज्ञ है। रागद्वेषका आत्यंतिक क्षय हो सकता है। ज्ञानका प्रतिबंधक रागद्वेष है। ज्ञान, जीवका स्वत्वभूत धर्म है। .... जीव, एक अखण्ड संपूर्ण न होनस उसका ज्ञानसामर्थ्य संपूर्ण है। [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ७] सर्वज्ञपद वारंवार श्रवण करने योग्य, पठन करने योग्य, विचार करने योग्य, ध्यान करने योग्य __ और स्वानुभवसे सिद्ध करने योग्य है। [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ९] सर्वज्ञदेव सर्वज्ञदेव निग्रंथ गुरु . उपशममूल धर्म ... निग्रंथ गुरु दयामूल धर्म सर्वज्ञ देव निग्रंथ गुरु . . ... ... . . . . . . . .. .. : सिद्धातमूल धम.. .. ............ . . सर्वज्ञदेव ... . . . . निग्रंथ गरु .... जिनाज्ञामूल धर्म . . . . ... सर्वज्ञका स्वरूप निग्रंथका स्वरूप धर्मका स्वरूप . .. . . . सम्यक् क्रियावाद
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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