SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 975
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमद् राजचन्द्र [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ११] ॐ नमः प्रदेश ) समय ... ... परमाण द्रव्य गुण पर्याय जड । चेतन .. .. ...... ... .. श्री.पष्ठ १३] ॐ नमः मल द्रव्य शाश्वत । :.... मूल द्रव्य :--जीव, अजीवं। : . .. . . पर्याय :-अशाश्वत। अनादि नित्य पर्याय :-मेरु आदि । संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ १ ॐ नमः ...... सब जीव सुखको चाहते हैं। दुःख सबको अप्रिय है। दुःखसे मुक्त होना सब जीव चाहते हैं। ..." उसका वास्तविक स्वरूप समझमें न आनेसे वह दुःख नष्ट नहीं होता। उस दुःखके आत्यंतिक अभावका नाम मोक्ष कहते हैं । अत्यन्त वीतराग हुए बिना आत्यंतिक मोक्ष नहीं होता। सम्यग्ज्ञानके बिना वीतराग नहीं हुआ जा सकता। सम्यग्दर्शनके बिना ज्ञान असम्यक् कहा जाता है । वस्तुको जिस स्वभावसे स्थिति है, उस स्वभावसे उस वस्तुकी स्थिति समझमें आना उसे सम्यग्ज्ञान कहते हैं। [संस्मरण-पोयो ३, पृष्ठ १६] सम्यग्ज्ञानदर्शनसे प्रतीत हुए आत्मभावसे आचरण करना चारित्र है। इन तीनोंको एकतासे मोक्ष होता है। जीव स्वाभाविक है। परमाणु स्वाभाविक है। जोव अनंत हैं।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy