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३१ वॉ वर्ष ८२५
मोरबी, माघ सुदी ४, बुध, १९५४ ।। आत्मस्वभावकी निर्मलता होनेके लिये मुमुक्षुजीवको दो साधन अवश्य ही सेवन करने योग्य हैंसत्श्रुत और सत्समागम । प्रत्यक्ष सत्पुरुषोका समागम जीवको कभी कभी हो प्राप्त होता है, परन्तु यदि जीव सदृष्टिमान हो तो सत्श्रुतके बहुत कालके सेवनसे होनेवाला लाभ प्रत्यक्ष सत्पुरुषके समागमसे बहुत अल्पकालमे प्राप्त कर सकता है, क्योकि प्रत्यक्ष गुणातिशयवान निर्मल चेतनके प्रभाववाले वचन और वृत्ति क्रिया-चेष्टित्व है। जीवको वैसा समागमयोग प्राप्त हो ऐसा विशेष प्रयत्न कर्तव्य है। वैसे योगके अभावमे सत्श्रुतका परिचय अवश्य ही करना योग्य है। जिसमे शातरसकी मुख्यता है, शातरसके हेतुसे जिसका समस्त उपदेश है, और जिसमे सभी रसोका शातरसभित वर्णन किया गया है, ऐसे शास्त्रका परिचय सत्श्रुतका परिचय है।
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मोरबी, माघ सुदी ४, बुध, १९५४
..' यदि हो सके तो बनारसीदासके जो ग्रन्थ आपके पास हो (समयसार--भाषाके सिवाय), दिगम्बर 'नयचक्र', 'पचास्तिकाय' (दूसरी प्रति हो तो), 'प्रवचनसार' (श्री कुन्दकुन्दाचार्यकृत हो तो) और 'परमात्मप्रकाश' यहाँ भेजियेगा।
. जीवको सत्श्रुतका परिचय अवश्य ही कर्तव्य है । मल, विक्षेप और प्रमाद उसमे वारवार अंतराय करते हैं, क्योकि दीर्घकालसे परिचित है, परन्तु यदि निश्चय करके उन्हे अपरिचित करनेकी प्रवृत्ति की जाये तो ऐसे हो सकता है । यदि मुख्य अतराय हो तो वह जीवका अनिश्चय है।
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ववाणिया, माघ वदो ४, गुरु, १९५४ , इस जीवको उत्तापके मूल हेतु क्या है तथा उनकी निवृत्ति क्यो नही होती, और वह कैसे हो? ये प्रश्न विशेषतः विचार करने योग्य हैं, अन्तरमे उतारकर विचार करने योग्य हैं। जब तक इस क्षेत्रमे स्थिति रहे तब तक चित्तको अधिक दृढ रखकर प्रवृत्ति करें। यही विनती।
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बबई, माघ वदी ३०, १९५४ श्री भाणजीस्वामीको पत्र लिखवाते हुए सूचित करे–'विहार करके अहमदावाद स्थिति करनेमे मनको भय, उद्वेग या क्षोभ नही है, परतु हितबुद्धिसे विचार करते हुए हमारी दृष्टिमे यह आता है कि अभी उस क्षेत्रमे स्थिति करना योग्य नही है। यदि आप कहेगे तो उसमे आत्महितको क्या वाधा आती है. उसे विदित करेंगे, और उसके लिये आप सूचित करेंगे तो उस क्षेत्रमे समागममे आयेंगे । अहमदावादका पत्र पढकर आप सबको कुछ भी उद्वेग या क्षोभ कर्तव्य नही है, समभाव कर्तव्य है । लिखनेमे यदि कुछ भी अनम्रभाव हुआ हो तो क्षमा करें।
यदि तरत ही उनका समागम होनेवाला हो तो ऐसा कहे-'आपने विहार करनेके बारेमे सूचित किया, उस बारेमे आपका समागम होनेपर जैसा कहेगे वैसा करेगे।' और समागम होनेपर कहे"पहलेको अपेक्षा सयममे शिथिलता की हो ऐसा आपको मालूम होता हो तो वह बतायें, जिससे उसकी निवत्ति की जा सके, और यदि आपको वैसा न मालूम होता हो तो फिर यदि कोई जीव विपमभावके अधीन होकर वैसा कहे तो उस वातपर ध्यान न देकर आत्मभावका ध्यान रखकर प्रवृत्ति करना योग्य है।