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२३ वॉ वर्ष
२१९ जिस विवेकको महाखेदके साथ गौण करना पड़ा है, उस-विवेकमे ही चित्तवृत्ति प्रसन्न रह जाती है, उसको बाह्य प्रधानता नही रखी जा सकती, इसके लिये अकथ्य खेद होता है । तथापि जहाँ निरुपायता है, वहाँ सहनशीलता सुखदायक है, ऐसी मान्यता होनेसे मौन रखा है।
कभी-कभी सगी और प्रसगी तुच्छ निमित्त हो पड़ते हैं, उस समय उम विवेकपर किसी तरहका आवरण आ जाता है, तब आत्मा बहुत ही दुविधामे पड़ जाता है । जोवनरहित होनेकी, देहत्याग करनेकी दुखस्थितिकी अपेक्षा उस समय भयकर स्थिति हो जाती है, परन्तु ऐसा अधिक समय तक नही रहता; और ऐसा जब रहेगा तब अवश्य ही देह त्याग करूँगा। परन्तु असमाधिसे प्रवृत्ति नही करूँगा ऐसी अब तककी प्रतिज्ञा स्थिर बनी हुई है।
११४ __ मोरवी, आषाढ़ सुदी ४, गुरु, १९४६ मोरबीका निवास व्यवहारनयसे भी अस्थिर होनेसे उत्तर भेजा नही जा सकता था। आपके प्रशस्त भावके लिये आनन्द होता है । उत्तरोत्तर यह भाव आपके लिये सत्फलदायक हो।
उत्तम नियमानुसार और धर्मध्यानप्रशस्त व्यवहार करे, यह मेरी वारवार मुख्य विज्ञप्ति है । शुद्धभावकी श्रेणोको विस्मृत नही करते, यह एक आनन्दकथा है।
बबई, आषाढ़ सुदी ५, रवि, १९४६ धर्मेच्छुक भाई श्री,
आपके दोनो पत्र मिले। पढ़कर सन्तोष हआ। ___ उपाधिकी प्रबलता विशेष रहती है । जीवन कालमे ऐसा कोई योग आना निर्मित हो, तो मौनभावउदासीनभावसे प्रवृत्ति कर लेना ही श्रेयस्कर है।
भगवतीजीके पाठके सम्बन्धमे सक्षिप्त स्पष्टीकरण नीचे दिया है :___ सुहजोगं पडुच्चं अणारंभी, असुहजोग पडुच्च आयारंभी, परारंभी, तदुभयारंभी।
शुभ योगकी अपेक्षासे अनारंभी, अशुभयोगको अपेक्षासे आत्मारभी, परारभी, तदुभयारभी (आत्मारभी और परारभी)।
यहाँ शुभका अर्थ पारिणामिक शुभ लेना चाहिये, यह मेरी दृष्टि है। पारिणामिक अर्थात् जो परि___णाममें शुभ अथवा जैसा था वैसा रहना है।
यहाँ योगका अर्थ मन, वचन और काया है।
शास्त्रकारका यह व्याख्यान करनेका मुख्य हेतु यथार्थ दिखानेका और शुभयोगमे प्रवृत्ति करानेका है । पाठमे बोध बहुत सुदर है।
आप मेरा मिलाप चाहते हैं, परन्तु यह कोई अनुचित काल उदयमे आया है। इसलिये आपके लिये मिलापमे भी मैं श्रेयस्कर सिद्ध हो सकूँ ऐसी आशा थोड़ी ही है।
जिन्होने यथार्थ उपदेश किया है, ऐसे वीतरागके उपदेशमे परायण रहे, यह मेरा विनयपूर्वक आप दोनो भाइयोसे और दूसरोसे अनुरोध है ।
मोहाधोन ऐसा मेरा आत्मा वाह्योपाधिसे कितने प्रकारसे घिरा हुआ है, यह आप जानते है, इसलिये अधिक क्या लिखू?
अभी तो आप अपनेसे ही धर्मशिक्षा ले। योग्य पात्र वनें । मै भी योग्य पात्र बनें। अधिक फिर देखेंगे।
वि० रायचन्दके प्रणाम।