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परिशिष्ट ५ विशिष्ट शब्दार्थ
अधर्म द्रव्य-जीव और पुद्गलोकी स्थितिम उदासीन कर्मभूमि-भोगभूमि । असि, मसि, कृषि आदि पट्- सहायक कारण, छह द्रव्योमेसे एक द्रव्य । . ___ कर्मरहित भोगभूमि, मोक्षके अयोग्य क्षेत्र । अधिकरण क्रिया-तलवार आदि हिंसक साधनोके काल-असमय ।
आरभ-समारभके निमित्तसे होनेवाला कर्मवन्धन नगुरुलघु-गुरुता और लघुतारहित ऐसा पदार्थका (आक ५२२) । स्वभाव ।
अधिष्ठान हरि भगवान, जिसमेसे वस्तु उत्पन्न हुई, गोप्य-प्रगट ।
जिसमे वह स्थिर रही और जिसमे वह लयको प्राप्त मघ-पाप।
हुई । (आक २२०) प्रचित-जीव रहित ।
अधोदशा-नीची अवस्था । प्रचेतन-जड पदार्थ ।
अध्यात्म-आत्मा सम्बन्धी । प्रज्ञान-मिथ्यात्व सहित ज्ञान । देखे आक ७६८ ।।
अध्यात्ममार्ग-यथार्थ समझमे आनेपर परभावसे प्रज्ञान परिषह- सत्पुरुषका योग मिलने पर भी जीव
____ आत्यतिक निवृत्ति करना यह अध्यात्ममार्ग है । को अज्ञानकी निवृत्ति करनेका साहस न होता हो,
(आक ९१८) उलझन आ पडती हो कि इतना सारा पुरुषार्थ करते हुए भी ज्ञान प्रगट क्यो नही होता इस प्रकारका
अध्यात्मशास्त्र- जिन शास्त्रोमें आत्माका कथन है ।
"निज स्वरूप जे किरिया साधे, तेह अध्यातम लहीए भाव । देखे आक ५३७ ।।
रे।'-श्री आनन्दघनजी। अठारह दोष-पाँच प्रकारके अतराय (दान, लाभ,
अध्यास-मिथ्या आरोपण, भ्रान्ति । भोग, उपभोग, वीर्य), हास्य, रति, अरति, भय,
अनगार-मुनि, साधु, घर रहित । जुगुप्सा, शोक, मिथ्यात्व, अज्ञान, अप्रत्याख्यान, राग, द्वेष, निद्रा और काम । (मोक्षमाला)
अनधिकारी-अधिकार रहित, अपात्र । (आत्मसिद्धि अणलिङ्ग-जिसका कोई विशिष्ट वाह्य चिह्न नही है,
गाथा ३१) किसी प्रकारके वेपसे भिन्न ।
अनन्यभाव-उत्कृष्ट भाव, शुद्ध भाव । अणु-सूक्ष्म, अल्प, पुद्गलका छोटेसे छाटा भाग।
अनन्य शरण-जिसके समान अन्य शरण नहीं है। अणुव्रत-अल्पव्रत, जिन व्रतोको श्रावक धारण करते है। अनभिसधि-कपायसे वीर्यकी प्रवर्तना। अतिक्रम-मर्यादाका उल्लघन ।
अनतकाय-जिममे अनन्त जीव हो ऐसे शरीरवाले, अतिचार-दोष (व्रतको मलिन करे ऐसा व्रतभगकी कदमूलादि । इच्छा बिना लगनेवाला दोष)।
अनत चारित्र-मोहनीयकर्मके अभावमे आत्मस्थिरताअतिपरिचय-गाढ सम्बन्ध, हदसे ज्यादा परिचय ।
रूप दशा। अतीत काल-भूतकाल ।
अनत ज्ञान-केवलज्ञान । अथसे इति-प्रारम्भसे अत तक ।
अनत दर्शन-फेवलदर्शन । अनत्तादान-विना दिये हुए वस्तुका ग्रहण करना । चोरी। अनतराशि-अपार राशि । अद्धासमय-कालका छोटेसे छोटा अश, वस्तुके परि- अनाकार-आकारका अभाव । वर्तनमें निमित्तरूप एक द्रव्य ।
अनाचार-पाप, दुराचार, तमग । अद्वैत-एक ही वस्तु । एक आत्मा या ब्रह्मके विना अनाथता-निराधारता; असरणता । ___ जगतमे दुसरा कुछ नहीं है ऐसी मान्यता । अनादि-जिसकी आदि न हो।